मराठी फिल्मों के अभिनेता और निर्माता दादा कोंडके को आम आदमी का हीरो माना जाता है. फिल्मों में उनकी डबल मीनिंग कॉमेडी को खासा पसंद किया गया. एक दौर था जब उनकी 9 फिल्में 25 सप्ताह तक सिनेमाघरों में चली थी. यह गिनीज बुक में एक रिकॉर्ड के रूप में दर्ज है. आज दादा कोंडके की बर्थ एनिवर्सरी है. उनका जन्म 8 अगस्‍त 1932 को हुआ था.

दादा की फिल्मों के टाइटल भी ऐसे होते थे कि सेंसर बोर्ड को फिल्म पास करने में पसीने छूट जाते थे. दोहरे अर्थों वाले इन टाइटल को सेंसर बोर्ड तमाम कोशिश करके भी बैन नहीं कर पाया. फिल्म इंडस्ट्री में लंबी पारी खेलने के बाद 14 मार्च, 1998 को मुंबई के दादर में दादा कोंडके का निधन हो गया.

दादा कोंडके की 1975 में आई फिल्‍म पांडू हवलदार बेहद चर्चित रही थी. इसमें उन्होंने टाइटल कैरेक्‍टर निभाया था. इस फिल्‍म के बाद ही हवलदारों को पांडू कहा जाने लगा था. उनकी अन्‍य चर्चित फिल्‍मों में सोंगाड्या, आली अंगावर आदि हैं. कोंडके अपने मराठी नाटक ‘विच्छा माझी पूरी करा’ के लिए भी मशहूर हैं. इसे कांग्रेस विरोधी नाटक माना जाता है. इसमें इंदिरा गांधी का मजाक उड़ाया गया था.

उन्होंने राजनीति में भी अपनी पूरी मौजूदगी रखी. वे शिवसेना से जुड़े. कोंडके शिवसेना की रैलियों में भीड़ जुटाने का काम करते थे. साथ ही अपने प्रतिद्वंदियों पर जमकर हमला बोलते थे. दादा कोंडके का असली नाम कृष्णा कोंडके था. उनका बचपन छोटी मोटी गुंडागर्दी के बीच बीता. दादा ने एक बार कहा था कि वे ईंट, पत्थर, बोतल आदि का अपने झगड़ों में इस्तेमाल करते थे.

बताया जाता है कि उनका एक सपना महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने का था. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा भी था, ”मैं सीएम बनना चाहता हूं.” उन्हें लगता था कि बाल ठाकरे जरूर उन्हें ऐसा मौका देंगे. लेकिन बाल ठाकरे सिर्फ उनका इस्तेमाल भीड़ जुटाने और अपने मराठी बैंक में वृद्धि करने के लिए कर रहे थे. जिसमें भोले कोंडके बड़े काम के रहे. वे विधायक भी नहीं बन पाए.

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