नई दिल्ली: भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होने के बावजूद 58 दिनों तक जीवित रहे।

कहते हैं कि भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर भारी कष्ट में थे, लेकिन उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य देव के उत्तरायण होने (मकर संक्रांति) की प्रतिक्षा की।

जैसा कि सभी को ज्ञात है कि महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। भीष्म पितामह 10 दिनों तक कौरवों के सेनापति के रूप में युद्ध लड़े थे। भीष्म पितामह की युद्ध नीति से पांडव परेशान हो गए। तब शिखंडी की मदद से पांडवों ने भीष्म को धनुष छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। जिसके बाद अर्जुन ने अपनी बाणों से भीष्म को धरती पर गिरा दिया।

चूंकि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिए अर्जुन के बाणों से बुरी तरह घायल हो जाने के बाद भी जीवित रहे। उन्हें प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरायण के महत्व को बताया था। उत्तरायण में शरीर त्यागने से जीवन मरण के बंधन से छुटकारा मिल जाता है। व्यक्ति सीधा मोक्ष प्राप्त करता है। यही कारण है कि भीष्म पितामह प्राण का त्याग करने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की।

(Disclaimer: यह जानकारी शास्त्रों और मान्यताओं पर आधारित है)

Show comments
Share.
Exit mobile version