आजकल सब को एक सवाल परेशान कर रहा है, वो है ओवर ईटिंग क्यों करते हैं? जैसा कि सभी जानते हैं हम जरूरत से ज्यादा और ऐसा भोजन खा रहे हैं, जो हमें मोटा बना रहा है, जिसका मतलब है खराब सेहत, हायपर टेंशन, हार्ट डिजीज और तमाम दूसरी जानलेवा तकलीफें।

इलाज एक ही है- हम हेल्दी फूड लें और उतना ही लें, जितना जरूरी है। हेल्दी फूड क्या है और हमें कितना खाना चाहिए, इसका हिसाब आपको कोई भी डाइट एक्सपर्ट बता देगा। लेकिन दुनियाभर में एक ही सच्चाई सामने आ रही है- डाइट प्लान्स काम नहीं करते क्योंकि इन पर टिका रहना 80 फीसदी लोगों के बस की बात है ही नहीं। लेकिन क्या मजेदार खाने से हार जाने का ही मामला है, जो हमें मोटा और बीमार बनाए रखता है, या फिर कुछ और है?? सवाल ये ही है कि आखिर हम ओवर ईटिंग क्यों करते हैं।

इस सवाल के जवाब के लिए हमें बायोकेमिस्ट्री का एक छोटा-सा लेसन जानना होगा। जब हमारी बॉडी को खाने की जरूरत महसूस होती है तब तो फैट सेल्स एक हॉरमोन छोड़ते हैं, जिसका नाम ग्रेलिन है। इससे हमें भूख लगने का एहसास होता है। खाना के दौरान हमारे दिमाग में एक औक केमिकल डोपेमाइन एक्टिव हो जाता है, जिससे हमें मजे का अहसास होता है। जब बॉडी की जरूरत पूरी हो जाती है तो लेप्टिन नाम ता हॉरमोन निकलता है। ये डोपेमाइन का असर मिटाता ह, जिससे खाने का मजा भी खत्म हो जाता है। इसी दौरान ग्रेलिन का असर भी खत्म हो जाता है और हमारी भूख शांत हो जाती है।

भूख और भोजन का ये कुदरती सिस्टम फेल हो रहा है और इसलिए हमारा पेट कभी नहीं भरता। हम ऱाते रहते हैं..क्यों??? इसकी दो वजहें बताई जा रही हैं और दोनों ही लेप्टिन हॉरमोन से जुड़ी हैं। एक यह कि शुगर से लेप्टिन बेअसर होने लगता है। फैट और उससे भी ज्यादा शुगर आज के जमाने के खाने पर हावी है। हमारी डाइट में मौजूद ये एक्स्ट्रा शुगर लेप्टिन के खिलाफ रेजिस्टेंस का काम कर रही है, जिससे भूख मिटने का अहसास पैदा नहीं होता और खाने का मजा बना रहता है। कार्टून मूवी का वह चूहा दुनिया का बेहतरीन फूड एक्सपर्ट है और वह जब स्वाद का ज़िक्र करता है, तो खट्टे, मीठे, नमकीन स्वादों की अनगिनत परतों के बीच हम काले बैकग्राउंड में रोशनी की तरंगों, आतिशबाजी और बूंदों की तरह उसे देखते हैं। कोई भी खाना रूप, रस और गंध की कई झलकें अपने में समेटे रहता है।

एक फूड टेस्टर की तरह क्या आपने कभी उसकी खोज की?यह खोज क्यों जरूरी है? इसलिए कि जब हम डूब कर उस स्वाद में खोते हैं, तो दिमाग़ को संतुष्टि का अहसास ज्यादा होता है। हम दिमाग और उसके रसायनों को अपने गेम में शामिल कर लेते हैं। हम खुद पर कंट्रोल पा लेते हैं और तब थोड़ा खाना भी हमें तृप्ति का गहरा अहसास दे जाता है। इस माइंड गेम में दो बातें अहम हैं। पहला है ध्यान, यानी खाने के दौरान अपने ख़यालों को भोजन और उसके स्वाद की तलाश पर टिका देना।

कुछ और दिमाग़ में न हो, खाने के सिवा। आज की लाइफस्टाइल में हम खाना कभी खाने के साथ नहीं खाते। हम या तो काम के साथ खाते हैं या टीवी के साथ। हमारा दिमाग़ खाने को नोटिस ही नहीं करता और हम भकोसते जाते हैं। और दूसरी बात है, गंध। वैज्ञानिकों ने भुक्खड़पने की जो दूसरी वजह बताई है, वह यह कि कम नींद का बुरा असर लेप्टिन जैसे हॉरमोंस का बैलेंस बिगाड़ रहा है। जब लेप्टिन जैसे हॉरमोंस का बैलेंस बिगाड़ रहा है। जब लेप्टिन काम नहीं करता और डोपेमाइन का हाई लेवल बना रहता है, तो एक नई परेशानी पैदा हो जाती है।

दिमाग़ इसका आदी होने लगता है और खाने में पहले जितने मजे के लिए हमें पहले से ज्यादा खाना पड़ता है। बायोकेमिस्ट्री के इस लेसन से हमें यह भी पता चलता है कि भूख और खाने का यह सारा खेल दिमाग़ में ही चलता है और वहीं इसका क्लू हमें मिल सकता है। तो अब रैटाटुई की बारी है।

Show comments
Share.
Exit mobile version