नई दिल्ली। ओलंपिक पदक जीतने के बाद अक्सर खिलाड़ियों को मेडल को दांतों से काटते हुए देखा जा सकता है. कई फोटोग्राफर्स का भी मानना है कि ये काफी पॉपुलर पोज है हालांकि टोक्यो ओलंपिक्स 2020 के प्रशासन ने ओलंपिक खिलाड़ियों को ऐसा करने से मना किया है और इसकी वजह भी काफी महत्वपूर्ण है.
टोक्यो ओलंपिक 2020 के आयोजनकर्ताओं ने एक ट्वीट के सहारे एथलीट्स को याद दिलाया है कि ये ओलंपिक पदक को दांतों तले दबाना ठीक फैसला नहीं होगा. इस ट्वीट में कहा गया है कि ये ओलंपिक पदक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस मसलन रिसाइकिल हुए स्मार्टफोन्स से बनाए गए हैं.
इस ट्वीट में आगे लिखा था कि इनमें से ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइज को जापान के लोगों ने ओलंपिक्स के लिए डोनेट किया है. इस ट्वीट में आगे फनी अंदाज में लिखा था कि तो यही कारण है कि आपको इन मेडल्स को दांतों से नहीं काटना चाहिए. लेकिन हम जानते हैं कि आप भी फिर भी ऐसा करेंगे.
गौरतलब है कि टोक्यो 2020 मेडल प्रोजेक्ट नाम का ये प्रोजेक्ट जापान में दो सालों तक चला था. इस रिसाइकिलंग प्रोजेक्ट के सहारे इतने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइज को इकट्ठा किया गया था जिससे 5000 स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक को टोक्यो ओलंपिक्स के लिए तैयार किया जा सके.
इस कैंपेन में 80 टन इलेक्ट्रॉनिक डिवाइज को इकट्ठा किया गया था जिसमें से ज्यादातर मोबाइल फोन्स, लैपटॉप और बाकी चीजें थीं. डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, ओलंपिक खिलाड़ियों की मेडल्स को दांतों से दबाने की प्रथा साल 1904 से चली आ रही है. उस साल पहला शुद्ध गोल्ड मेडल खिलाड़ियों को दिया गया था.
चूंकि सोना मुलायम धातु होता है, ऐसे में इसे काटकर इसकी शुद्धता का परीक्षण किया जाता है. यही कारण है कि लोग सोने को दांतों के काटने के साथ ही पता लगाते थे कि ये असली सोना है या गोल्ड प्लेट चढ़ाई गई है. हालांकि साल 1912 में आखिरी बार ओलंपिक्स खेलों में शुद्ध सोने के पदक बांटे गए थे.
इसके अलावा इंटरनेशल सोसाइटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियंस के प्रेसिडेंट डेविड वालेचिंस्की ने कुछ साल पहले सीएनएन को बताया था कि मेडल जीतने के बाद एथलीट फोटोग्राफर्स की रिक्वेस्ट के चलते और अपने पोज को यादगार बनाने के लिए वे इन मेडल्स को दांतों से काटते हैं. इन तस्वीरों को किसी खिलाड़ी के करियर का यादगार लम्हा माना जाता है.