दुनिया को खत्म करने के लिए इंसान एकदम सही रास्ते पर चल रहा है. अब से मात्र 19 साल बाद यानी 2040 में इंसानों की जिंदगी नर्क हो जाएगी. ये दावा किया जा रहा है 1972 में बनाई गई एक रिपोर्ट का दोबारा विश्लेषण करने के बाद. क्योंकि इंसान लगातार अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों से भाग रहा है. आइए जानते हैं कि इस रिपोर्ट में इंसानों की जिंदगी को क्यों नर्क बनाने की बात कही गई है. क्यों कहा गया है कि इंसान वैश्विक खात्मे की ओर बढ़ रहा है.

1972 में एक किताब छपी थी द लिमिट्स टू ग्रोथ . इसमें मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि औद्योगिक सभ्यता हर कीमत पर लगातार आर्थिक विकास की ओर बढ़ती रही तो एक दिन सरकारें गिर जाएंगी. सहयोग खत्म हो जाएगा. इसकी वजह से भविष्य में 12 संभावित भयावह स्थितियां बन सकती हैं, जो किसी भी इंसान, समुदाय या देश और धरती के लिए फायदेमंद नहीं होंगी.  इस रिपोर्ट में बताई गई 12 संभावित खतरनाक स्थितियों में से एक सबसे भयावह स्थिति ये थी कि साल 2040 तक दुनिया का आर्थिक विकास तेजी से होगा. यह अपने पीक पर रहेगा. उसके बाद एकदम तेजी से नीचे गिरेगा. इसके साथ ही वैश्विक आबादी कम होगी. खाना की कमी होगी. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की भारी किल्लत होगी. इसे बिजनेस ऐज यूजुअल सीनेरियो कहा गया था.

इस वैश्विक गिरावट से इंसानों की नस्ल तो खत्म नहीं होगी, लेकिन बिना पैसे, बिना खाने और बिना प्राकृतिक संसाधनों के इनकी जिदंगी नर्क हो जाएगी. स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग पूरी दुनिया में गिर जाएगा. अब इस बात की पुष्टि और वर्तमान परिस्थितियों में क्या होगा भविष्य में यह जानने के लिए MIT की सस्टेनिबिलिटी और डायनेमिक सिस्टम एनालिसिस रिसर्चर गैरी हैरिंग्टन ने इस रिपोर्ट का आज के अनुसार फिर से विश्लेषण किया. जिसकी रिपोर्ट येल जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

गैरी पिछले साल ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हुई हैं. वो आज के रियल वर्ल्ड डेटा के साथ द लिमिट्स टू ग्रोथ का एनालिसिस कर रही हैं. इस एनालिसिस में गैरी ने 10 फैक्टर्स पर ध्यान दिया. जिनमें आबादी, प्रजनन दर, प्रदूषण स्तर, खाद्य उत्पादन और औद्योगिक आउटपुट प्रमुख हैं. उन्होंने देखा कि इस एनालिसिस के परिणाम बहुत हद तक 1972 में प्रस्तावित BAU सीनेरियो से मिलते-जुलते हैं. हालांकि, एक जगह रियायत मिलने की संभावना है. गैरी ने बताया कि एक सीनेरियो उस रिपोर्ट में बताई गई थी, जिसे कॉम्प्रिहेंसिव टेक्नोलॉजी (CT) कहा गया. यानी तकनीकी रूप से इतना ज्यादा विकास हो जाए कि प्रदूषण कम किया जा सके और खाद्य सामग्रियों का उत्पादन बढ़ाया जा सके. ताकि प्राकृतिक संसाधनों की कमी भी हो तो खाने की कमी न हो. लेकिन इससे बढ़ती हुई वैश्विक आबादी और व्यक्तिगत कल्याण की भावना को नुकसान पहुंचता है.

इसके पीछे वजह ये है कि जब प्राकृतिक संसाधनों की कमी होगी, तब आर्थिक विकास तेजी से नीचे की ओर गिरेगा. यानी आज के औद्योगिक सभ्यता का तेजी से पतन होगा. गैरी कहती है कि आज से करीब 10 साल बाद ही BAU और CT सीनेरियो के विकास में बाधा आने लगेगी. ये रुक जाएंगे. यानी लगातार विकास की कोई भी अवधारणा पूरी नहीं होगी. इससे इंसानों को नुकसान होने लगेगा.

गैरी ने कहा फिलहाल अच्छी खबर ये है कि अब भी देर नहीं हुई है. इन दोनों परिस्थितियों से बचने के लिए इंसानी समाज को सही दिशा और दशा में काम करना होगा. इसका विकल्प है – स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो यानी स्थिर दुनिया परिस्थिति. इस स्थिति में आबादी, प्रदूषण, आर्थिक विकास तो बढ़ेंगे लेकिन प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे कम होंगे. इससे फायदा ये होगा कि जैसे ही प्राकृतिक संसाधनों की कमी दिखे, आप बाकी को रोक दें या सीमित कर दें.

तकनीकी विकास के साथ स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो को चलाएं तो उससे वैश्विक समाज की प्राथमिकताएं बदलेंगी. गैरी ने कहा कि लोगों को अपने मूल्यों पर काम करना होगा. नीतियां बनानी होंगी. परिवार छोटे रखने होंगे. चाहतें और जरूरतें कम करनी होंगी. जन्म दर को नियंत्रित करना होगा. औद्योगिक आउटपुट को सीमित करना होगा, सेहत और शिक्षा को प्राथमिकता से चलाना होगा. इससे प्राकृतिक संसाधन सीमित तरीके से खर्च होंगे. तब धरती बचेगी, इससे इंसान और उसके देश बचेंगे. स्टैबलाइज्ड वर्ल्ड सीनेरियो के ग्राफ को देखें तो इससे पता चलता है कि उस समय यानी 20 साल बाद भी वैश्विक आबादी के हिसाब से खाद्य सामग्री रहेगी. प्रदूषण कम होगा. प्राकृतिक संसाधनों की कमी स्थिर हो जाएगी. सामाजिक खात्मे को बचाया जा सकेगा. ये एक काल्पनिक परिस्थिति लगती है क्योंकि उस समय तक कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होगी. लेकिन अगर इस सीनेरियो के हिसाब से चले तो वह भी कम होगा.

गैरी ने बताया कि कैसे इंसान ने वैश्विक स्तर पर एकता दिखाई है. कोविड-19 के समय में जब वैक्सीन विकसित करने और उसे पूरी दुनिया में पहुंचाने की बात आई तो इंसानों ने एकता दिखाई. सामुदायिक और वैश्विक जिम्मेदारी निभाई है. इसी तरह अगर हर देश का इंसान जलवायु समस्या को एकसाथ मिलकर खत्म करने की कोशिश करे तो कुछ भी संभव है. हम अपना भविष्य किसी भी समय सुधार सकते हैं.  गैरी कहती हैं कि अभी देर नहीं हुई है. अगर इंसान अपनी आबादी, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और औद्योगिक विकास की रफ्तार को सीमित करे तो वह 20 साल बाद भी सुरक्षित रह सकता है. इसके लिए जरूरी है कि इंसानियत अपनी सीमा तय करें. या फिर किसी बिंदु पर पहुंच कर सीमा बना दें. ताकि मानव कल्याण की भावना धरती से खत्म न होने पाए.

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