गया। हिन्दी विभाग, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के द्वारा सामाजिक विज्ञान एवं नीति पीठ में भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की जयंती के अवसर पर बुधवार को “बाबू जगजीवन राम एवं दलित राजनीतिक चेतना” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरुआत में बाबू जगजीवन राम के तैल चित्र पर गोष्ठी में उपस्थित मुख्य ९६अतिथि भाषा एवं साहित्य पीठ के अधिष्ठाता प्रोफ़ेसर सुरेश चन्द्र और विशिष्ट अतिथि राजनीति शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० प्रणव कुमार एवं शिक्षक शिक्षा विभाग के सह प्राध्यापक डॉ० रविकांत ने पुष्प अर्पित किया।

अपने वक्तव्य में प्रोफ़ेसर सुरेश चन्द्र ने कहा कि बाबू जगजीवन राम एक व्यक्ति नहीं विचार थे। बाबू जगजीवन राम जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से संबंधित उदाहरण देते हुए आगे उन्होंने कहा कि बाबू जी की सरलता और सहजता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। वे उदार हृदयी और मानवता की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने भारत को मानवतावादी राष्ट्र के रूप में समृद्ध किया। आज के समय में बाबू जगजीवन राम जैसे मानवतावादी राजनेताओं की ज़रूरत है। वे समरसता के पक्षधर थे और समतामूलक समाज के निर्माण पर हमेशा बल देते रहे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने महात्मा गांधी के द्वारा बहुजनों के लिए “हरिजन” शब्द के प्रयोग पर आपत्ति व्यक्त की थी।

प्रोफेसर सुरेश चन्द्र ने बल देकर कहा कि वर्तमान दलित राजनेताओं को बाबू जगजीवन राम के आदर्शों को अपनाने कि आवश्यकता है। अपने संबोधन में डॉ० प्रणव कुमार ने बाबू जगजीवन राम जी की राजनीतिक एवं सामाजिक उपलब्धियों एवं उनके मंत्री काल में लिए गए महत्वपूर्ण फ़ैसलों और तैयार हुई नीतियों पर बात की। उन्होंने कहा कि अप्रैल माह भारत के तीन महापुरुषों के जन्मदिवस का माह है। बाबू जगजीवन राम, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर और हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम का जन्म अप्रैल माह में हुआ। डॉ० रविकांत ने कहा कि बाबू जगजीवन राम का जीवन आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का श्रोत है। उनके जीवन के संघर्ष और उनका त्याग हमेशा याद रखा जाएगा। डॉ. रविकांत ने आगे कहा कि बाबू जगजीवन राम जी केंद्र सरकार के जिस विभाग में मंत्री बने उस विभाग ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की|

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