बेगूसराय, 15 जून । लॉकडाउन से उत्पन्न स्थिति में दिल्ली और मुंबई से आने वाले प्रवासी बिहारियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अब वहां से वही लोग आ रहे हैं, जिन्हें बहुत जरूरी है। लेकिन पूर्वोत्तर भारत के राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा चलाएंगे गुवाहाटी-लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्पेशल एक्सप्रेस लोगों के घर वापसी का बेजोड़ साधन बन गया है। यह ट्रेन बेगूसराय, बरौनी से मोकामा, पटना के रास्ते जाती है जिसके कारण उत्तर बिहार के समस्तीपुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, गोपालगंज, सिवान, छपरा समेत अन्य जिलों के यात्री बरौनी जंक्शन पर उतर रहे हैं।

परदेस से लौटने वाले आधे से अधिक लोग अब वहां फिर वापस जाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे ही एक पैसेंजर समस्तीपुर के विनोद कुमार चौधरी ने बताया कि वह कोकराझार में रहकर जनरल स्टोर का दुकान चलाते थे। लेकिन अब उन्होंने अपना दुकान बेच दिया है और सब कुछ लेकर गांव आ गए। अब किसी भी हालत में वापस नहीं जाएंगे, अपने घर पर पत्नी के लिए श्रृंगार प्रसाधन की दुकान खोल देंगे, जबकि खुद निकट के ताजपुर बाजार में जनरल स्टोर की दुकान खोलेंगे। अपने पत्नी और बच्चों के साथ बरौनी जंक्शन पर उतर कर ताजपुर जाने के लिए जीरोमाइल में बस का इंतजार कर रहा है विनोद ने बताया कि 2008 में इंटर करने के बाद परिवार की हालत देखते ही उसने नौकरी के लिए काफी हाथ-मारा, लेकिन कोई जुगाड़ नहीं लगा। दो साल तक इंतजार करने के बाद दिल्ली चले गए, दिल्ली में एक जगह काम मिल गया, लेकिन एक महीना बाद ही तबीयत बहुत बिगड़ गई, जिसके बाद गांव आ गया। 2011 में पिताजी ने शादी कर दी।

 

इसके बाद असम के कोकराझार में रहने वाले गांव के ही कुछ लोगों से संपर्क हुआ तो उन लोगों ने वहां काम दिलाने की बात कही और मैं आसाम चला गया। वहां जाने पर अपने बिहार के लोगों के बीच रहा छह-सात दिन रहने के बाद काम मिलने की गुंजाइश हो गई। लेकिन इसी बीच देखा कि सभी लोग जिस जनरल स्टोर से अपना राशन खरीदते हैं, वह कभी-कभी परेशान कर देता है। जिसके बाद पिताजी से बात किया तथा वहां रह रहे पांच-छह ग्रामीणों से सहयोग लेकर 20 हजार की पूंजी जुटाई और सितनागुड़ी में जनरल स्टोर शुरू कर दिया। आसपास रह रहे बिहार के लोगों ने अच्छी मदद की और दुकान चल निकला तो एक पक्का मकान किराए पर लिया है। दिन मजे से गुजर रहे थे, हजार-पांच सौ की आमदनी रोज हो जाती थी। इसके बाद अपने को भी वही लेकर चला गया, समय-समय पर गांव में रह रहे घर वालों की मदद करता था। जब लॉकडाउन हो गया तो स्थिति काफी विकट हो गई, उग्रवाद प्रभावित कोकराझार में लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया। जिसके बाद उनकी आमदनी कम गई तथा परेशानी बढ़ गई, घर में बैठे-बैठे पत्नी और बच्चे भी बोर होने लगे। अपना दुकान था भोजन चल रहा था, लेकिन अपने परिवार आसपास रहने वाले ग्रामीण तथा अन्य लोगों को भी सामान मुहैया कराया जाना था। सामान मुहैया कराते-कराते आवश्यक वस्तुएं दुकान से समाप्त हो गई। थोक दुकान से सामान लेकर आ रहे थे तो एक दिन पुलिस ने पकड़ कर पीट दिया।

 

पुलिस की पिटाई से परेशान होकर थोक व्यापारी से लाया गया समान उसे लौटा दिया और घर वापसी का निश्चय किया। लेकिन सवाल दुकान का था, दुकान बेचने के लिए ग्राहक खोजने लगा, थक हार कर 18 मई करीब तीन लाख का दुकान एक लाख 81 हजार में दुकान बिक गया। जिसके बाद गांव आने के लिए टिकट का जुगाड़ लगाया, अपने दुकान और असम की धरती को प्रणाम कर रविवार को स्पेशल ट्रेन से घर के लिए चल पड़ा। अब दो-चार घंटे में अपने गांव पहुंच जाऊंगा। दिल में सुकून मिल रहा रहा है, मां पापा भी खुश हैं कि बेटा, बहू और पोता के साथ अब यहीं रहेगा। विनोद कहते हैं कि सरकारें लॉकडाउन से पहले प्रवासी मजदूरों को घर-वापसी की सुविधा दे देती तो लोगों को पत्थर पिघलाने वाले दर्द भरे दृश्य नहीं देखने पड़ते।

 

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