पालघर के एक मछुआरे चंद्रकांत तारे अपने 8 सहयोगियों के साथ 28 अगस्त की देर शाम मछली पकड़ने के लिए रवाना हुए थे. वे हरबा देवी नाव में थे. वे वाधवान जगह गए जो पालघर से 20 से 25 नॉटिकल मील दूर है.
तारे ने कभी नहीं सोचा था कि मछली पकड़ने की यह यात्रा उनकी किस्मत बदल देगी. तारे और उनकी टीम को ‘समुद्री सोना’ के नाम से जानी जाने वाली 157 घोल मछली मिली.
मछली का वास्तविक नाम ‘प्रोटोनीबिया डायकैंथस’ है. यह एक प्रकार की क्रोकर मछली है. इस मछली का उपयोग फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा होता है. मछली का प्रत्येक भाग की कीमत बहुत ज्यादा होती है.
मछली की हांगकांग, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर, जापान जैसे देशों में भारी मांग है. इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, दवाओं, सर्जरी में घुलनशील टांके बनाने में किया जाता है. मछली के हर हिस्से का औषधीय और औषधीय प्रयोजनों के लिए अत्यधिक उपयोग किया जाता है.
मछली की पूरी खेप यूपी और बिहार के व्यापारियों ने ली. इसकी नीलामी मुरबे पालघर में हुई थी. यह पूरी खेप 1.33 करोड़ में बिकी. प्रदूषण के कारण इस क्षेत्र में ऐसी मछलियां बहुत दुर्लभ हैं.