रांची| भारतीय नव वर्ष 365 दिन 66 घंटे के पश्चात वर्ष परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण दिवस माना जाता रहा है। भारतीय तिथि के अनुसार यह 9 दिन नये साल के आगमन का एक गौरवपूर्ण महत्व का दिन है। यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का पहला दिन शुभ तिथि के आगमन वर्ष का शुभारंभ माना जाता है। इस तिथि को यह माना जाता है की यह कलयुग ही नहीं द्वापर युग और त्रेता युग में भी स्थिति का महत्व रहा है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को त्रेता युग में भगवान श्री राम चंद्र जी को अयोध्या का राजा बनाने के लिए राजगुरु और ज्योतिषाचार्यों ने उनका राज्याभिषेक कराया था।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के तिथि के दिवस पर ही द्वापर युग में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करते हुए राजगुरु और ज्योतिषाचार्य तथा पंडितों ने मंत्रोच्चारण के साथ राजा अभिषेक कर राजा बनाया था। इस पृथ्वी का उदभव हिंदू शास्त्रों और धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान ने वराह  रुप लेकर समुद्र से पृथ्वी को निकाला| जहाँ से सृष्टि की रचना माना जाता है।

इन दोनों युगों के बाद कलयुग में भी विद्वानों और ज्योतिषाचार्यों ने भारत के सुप्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य का भी राज्याभिषेक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही कराया गया था। इसलिए उन्हीं के शासन काल के प्रारम्भ को वर्ष के शुभारम्भ की इस तिथि को ही विक्रम संवत् माना गया है। और वर्ष और समय गणना भारतीय विधि के अनुसार विक्रम संवत और शक संवत के रूप में की जाती रही है।

उदभव और विकास मान्यता की इस तिथि को ही लोग शुभ और अच्छा मानने लगे। इसी तिथि को भारत के मत-मतांतर में सृष्टि की रचना पर प्रकृति और जीवन‌ का खोज माना गया है। जहां मृदा (मिट्टी), आकाश, हवा, ताप, और पानी का एक जगह मिल पाया। इन पांचों के मिलने से ही सृष्टि का विकास हुआ है। इसलिए भी इस दिन का बहुत ही महत्व है। और प्रत्येक वर्ष शुभमंगल कलश के साथ नये वर्ष के आगमन का स्वागत किया जाता है। क्योंकि इसी दिन नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है। नवरात्र में लोग पूजा अर्चना कर कलश स्थापना करते हुए 9 दिन तक पूजा अर्चना करते हुए रामनवमी के दिन कलश स्थापना का अंत करते हैं।

पृथ्वी के इस सृजन दिवस यानी सृष्टि का सृजन दिवस के कालक्रम में ही प्रकृति भी अपना रूप दिखाती है। इस दिन के आगमन से पूर्व ही स्वागत के लिए नए कोंपल पत्तियां लिए फलों के पुष्प का शुरुआत चाहे आम का मंजर हो या लीची का या सखुआ (शाल) वृक्ष का। सभी में सृष्टि के उत्पत्ति का संकेत देते हुए अपना परिचय देते हैं। इसी सुखवा के मंजर और नए पत्ते के साथ जनजातीय समुदाय भी इसी कालक्रम में सरहुल भी मनाते हैं। यानी नए वर्ष का शुरुआत प्रकृति के अनुकूलित माना गया है। इसी प्रकार आज सभी लोग भारतीय नववर्ष को उत्सव और स्वागत करने के रूप में मनाएंगे।

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