प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म न केवल पीड़िता के विरुद्ध अपराध है, अपितु यह पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। इससे जीवन के मूल अधिकारों का हनन है। यदि एक्शन नहीं लिया गया तो लोगों का न्याय तंत्र से भरोसा उठ जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि 08 वर्ष की छोटी बच्ची से दुष्कर्म में 20 वर्ष कारावास, जो बढ़कर उम्र कैद हो सकती है। साथ में जुर्माना लगाया जा सकता है। ऐसे में ट्रायल से पहले आरोपित को निर्दोष नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने आठ साल की नाबालिग लड़की से दुराचार के आरोपित को जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया है और जमानत अर्जी खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने गोरखपुर, बांसगांव के आरोपी चंद्र प्रकाश शर्मा की अर्जी पर दिया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया और कहा कि इससे असहाय बच्ची की आत्मा को ठेस पहुंचती है। ट्रायल पूरा होने से पहले आरोपित की निर्दोषिता का निर्णय नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा आठ साल की बच्ची दुष्कर्म और उसके दुष्परिणाम नहीं जानती। भारत में बच्चियों की पूजा की जाती है। इसके बावजूद बच्चियों से छेड़छाड़ दुष्कर्म के अपराध में बढ़ोतरी होती जा रही है। लड़कियां मानसिक उत्पीड़न व डिप्रेशन की शिकार हो रही हैं। कुछ अपना जीवन समाप्त कर लें रही है। कई मामलों में परिवार की इज्जत बचाने के लिए ऐसी घटनाओं को दबा दिया जाता है।

मालूम हो कि 16 जुलाई 21 को 8 साल की दुष्कर्म पीड़िता अमरूद तोड़ने घर के बगल में गयी थी। जहां याची ने छेड़छाड़ की और दुष्कर्म किया। घर आकर लड़की ने बताया तो मेडिकल जांच कराई गई और एफआईआर दर्ज कराई गई। 17 जुलाई से आरोपित जेल में बंद है। सत्र अदालत ने जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। जिस पर स्वयं को निर्दोष बताते हुए हाईकोर्ट में यह अर्जी दाखिल की गई थी। याची का कहना था कि हाइमन टूटा नहीं है। मेडिकल जांच के समय ब्लीडिंग नहीं पायी गई। बयान में भी पीड़िता ने दुष्कर्म नहीं कहा है। किन्तु कोर्ट ने इन दलीलों को मानने से इंकार कर दिया।

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