किसी भी देश के लिए विपदा काल ही वह समय है जब वहाँ कार्य करने वाले स्वयंसेवी संगठन, रहने वाले समाज तथा संबंधों की राष्ट्र के प्रति दायित्वों की परीक्षा होती है। यह विपत्ति का काल है, समाप्त हो जाएगा। लेकिन इतिहास यह जरूर पूछेगा कि जब देश पर संकट आया था तब कौन से लोग किस प्रकार से राष्ट्र के साथ खड़े थे और वह कौन लोग थे जो देश को और विपत्ति में झोंक रहे थे।
वीरेंद्र पांडेय
यह त्रासदी का समय, नगरों की सड़कें वीरान पड़ी हैं, दुकान-प्रतिष्ठान सभी बंद, विद्यालय-विश्वविद्यालय बंद हैं। हमेशा यात्रियों से भरे रहने वाले बस अड्डे, रेलवे स्टेशन सुनसान हैं। यह इस सदी का हृदय विदारक दृश्य है, यह स्थिति उत्पन्न हुई है, उस चाइनीज वायरस के कारण से जिससे लोग अपने घरों में सिमट कर रह गए हैं। कल क्या होगा, जीवन फिर से कैसे पटरी पर लौटेगा, इन प्रश्नों से उन लोगों की मनः स्थिति कितनी भयावह हो रही होगी जो लॉकडॉन में अपने घर से दूर कहीं अन्यत्र कैद हो कर रह गये।
लेकिन इन सबके बीच तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, जो आपदा के आवेग से भी अधिक प्रखरता से आंखों के सामने घटित हो रहा है, वह तस्वीर है सम्पूर्ण मानव जाति को बचाने की। यह तस्वीर है उस सभ्य सज्जन शक्ति कि जिसके विचार में “सर्वे संतु निरामया” के भाव बीज रूप में स्थापित हैं।
पड़ोस के बुजुर्ग अत्यंत चिंतित हैं, उन्हें दिल की बीमारी है, उन्हें दवा की जरूरत है, दुकान कब खुलेगी? दवा कैसे मिलेगी? इत्यादि उधेड़बुन में लगे हैं, तभी पड़ोस का एक युवक आकर उनसे बोलता है, मैं लाकर आपको दवा दूंगा बाबूजी, आप चिंता ना करें। यह युवक! उसी विचार पाठशाला का एक छात्र है, जिसका ध्येय “वसुधैव कुटुम्बकम्” है।
प्रशासन के साथ मिलकर, एक फोन पर जरूरतमंद लोगों तक पहुँचना, राहत सामग्री देना, कोई भूखा न सोये इसके लिए प्रतिदिन लाखों लोगो के लिए भोजन पैकेट तैयार कर प्रशासन के अनुमति से बाँटना। यह दिनचर्या उन हजारों स्वमंसेवकों की है, जो कोरोना संक्रमण काल में ध्वज वंदना के बाद राष्ट्र आराधना में प्रतिदिन लग जाते हैं। इन दृश्यों को कुछ शब्दों में बांधें तो यह कार्य है सेवा,करुणा और अपनत्व का।
किसी भी देश के लिए विपदा काल ही वह समय है जब वहाँ कार्य करने वाले स्वयंसेवी संगठन, रहने वाले समाज तथा संबंधों की राष्ट्र के प्रति दायित्वों की परीक्षा होती है। यह विपत्ति का काल है, समाप्त हो जाएगा। लेकिन इतिहास यह जरूर पूछेगा कि जब देश पर संकट आया था तब कौन से लोग किस प्रकार से राष्ट्र के साथ खड़े थे और वह कौन लोग थे जो देश को और विपत्ति में झोंक रहे थे।
आज चाइनीज वाइरस आपदा काल में बहुत से भ्रम और क्रम टूट रहे हैं तथा स्पष्ट होता जा रहा है कि अदृश्य भाव में कितने घाव छुपे हुये थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक आज पूरे राजस्थान में भोजन व्यवस्था, सेनेटाइजेशन, दवा वितरण, मरीजों की सेवा, अस्पतालों को सहयोग, प्रशासन का सहयोग, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जन जागरण इत्यादि कामों में निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं। आज सेवा भारती की ओर से चलने वाले बाल केंद्र, सेवा केंद्र बन चुके हैं। सेवा भारती के माध्यम से सेवा बस्तियों का हर प्रकार से देखभाल का जिम्मा संघ ने लिया है। वहीं विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ के माध्यम से दिहाड़ी मजदूरों तक भोजन पैकेट का वितरण नित्य लाखों की संख्या में हो रहा है।
स्वयंसेवकों के माध्यम से पूरे प्रदेश में हजारों स्थानों पर लाखों परिवारों तक हर प्रकार की सहायता पहुँचाई जा रही है।
जयपुर प्रान्त की ओर से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार 1485 स्थानों पर, 9798 सेवारत कार्यकर्ताओं के माध्यम से, 14 अप्रैल तक, 121262 स्थानों पर लोगों को ठहरने की अस्थाई व्यवस्था की गई है। प्रशासन के साथ मिल कर जहाँ एक ओर रास्तों की ब्लॉकिंग एवं कॉलोनियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है, तो वहीं 108 एम्बुलेंस सेवा के कॉल सेंटर पर प्रतिदिन 13 -15 स्वयंसेवक सहयोग कर रहे हैं। विपदा के इस कठिन समय में संघ के अन्य समविचारी संगठन वनवासी कल्याण परिषद, विद्या भारती, हिन्दू जागरण मंच, विद्यार्थी परिषद्, किसान संघ जैसे दर्जनों संगठन सेवा कार्यों में लगे हैं।
पिछले दिनों एक वीडियो के माध्यम से रा. स्व. संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने महामारी के प्रकोप झेल रहे समाज को सम्बोधित करते हुये कहा कि भारत के संस्कार में ही सेवा है इसलिए आज की परिस्थितियों में न सिर्फ अपना ध्यान रखना है बल्कि अपने आस पास कोई भूखा न सोये इसकी चिंता करनी है।
वास्तव में जब भी इस देश पर संकट आया हो चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या पड़ोसी देशों द्वारा प्रायोजित संकट, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा देश के लिए समाज को जागृत कर कंधे से कंधे मिला कर खड़ा होता रहा है। संघ के कार्यकर्त्ता युद्ध स्तर पर राहत अभियानों में जुट कर समाज का दुःख हरने में लगे रहते हैं और इसके लिए ऐसे मन – मस्तिष्क का निर्माण संघ अपने प्रशिक्षणों -कार्यक्रमों के माध्यम से करता है क्योंकि प्रत्येक परिस्थिति के मूल में मन मस्तिष्क होता है, किसी भी चुनौती के लिए खुद को तैयार करना तथा उस अनहोनी संकट को स्वीकार कर समाधान खोजना यह एक प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है और संघ अपने स्वयंसेवकों में इसी भाव का बीजारोपण करता है, जिसमें कहा गया है-
पूर्ण विजय संकल्प हमारा अनथक अविरत साधना,
निशदिन प्रतिपल चलती आई राष्ट्रधर्म आराधना।
लेखक: जयपुर में भौतिक विज्ञान के व्याख्याता हैं।