रांची। 1857से पहले हूल एक ऐसी क्रांति हुई थी जिसने विदेशी उपनिवेशवाद की जड़े हिला दी थी। संथाल शांतिप्रिय, विनम्र स्वभाव के लोग होते हैं। पेशा से किसान, शिकारी स्वभाव के होते हैं। लेकिन 1855 के 30 जून को आज ही के दिन ब्रिटिश सेना के समक्ष गुरिल्ला तकनीक का प्रयोग कर आंदोलन में जान भर दिया, अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की शुरुआत कर दी। इस हूल आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिए देश में उठने वाली आवाज का मार्ग प्रशस्त करते हुए अंग्रेजी सेना में ऐसी लकीर खींच दी जो व्यापारिक दृष्टिकोण से, एवं प्रशासनिक स्वतंत्रता के उपरांत भी संथाल आदिवासियों के मनोबल एवं हौसलों का पूर्ण मूल्यांकन करने के लिए उद्वेलित करता है।

आज कार्तिक उरांव महाविद्यालय गुमला संबद्ध रांची विश्वविद्यालय रांची के बीएड संकाय के द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हूल दिवस के उपलक्ष में किया गया। इस संगोष्ठी में 30 प्रतिभागियों ने अलग-अलग जगहों से गूगल मीट के द्वारा अपनी बात रखी। जिसमें कार्तिक उरांव महाविद्यालय के बीएड संकाय के छात्र छात्राओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 100 से अधिक लोगों ने इस एक दिवसीय संगोष्ठी का लाभ उठाया और अपने बीते हुए इतिहास के सपूतों को सिद्धू- कान्हू ,चांद- भैरव, फूलों- झानू को नमन किया। इस मौके पर उपस्थित कॉलेज के प्राचार्य एजे खलखो, बीएड संकाय के समन्वयक डॉ दिलीप प्रसाद, मुख्य वक्ता के रूप में अपना बीज वक्तव्य रखा। उन्होंने बताया कि हूल दिवस की शुरुआत कैसे हुई। कौन कौन से कारण रहे किस प्रकार अंग्रेजो के द्वारा संताल आदिवासीयों को प्रताड़ित किया गया। कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर दीपक प्रसाद, ने किया। उन्होंने कहा की एक हूल की जरूरत आज भी है। सहसंयोजक प्रोफेसर सिलास डहंगा, डॉ राकेश प्रसाद ने संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम पर अपनी रोशनी डाली, प्रोफेसर पूनम भगत के द्वारा स्वागत भाषण दिया गया, प्रोफेसर मंती कुमारी ने झारखंड के आंदोलन के बारे में प्रकाश डाला, प्रोफेसर नीलम प्रतिमा मींज, ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वहीं समस्त बीएड संकाय के शिक्षक वृंद कार्तिक उरांव महाविद्यालय के समस्त शिक्षक वृंद इस मौके पर उपस्थित रहे।

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