रायबरेली। खुद के बलबूते गांव की आधी आबादी ने आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है।वह न केवल अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं बल्कि दूसरों को भी राह दिखा रही हैं। यह कहानी है मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को हासिल कर रहीं डलमऊ में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की।

भाजपा के जीत पर मिठाई बांटी तो लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला, सरकार देगी 2 लाख मुआवजा

क्षेत्र के ज्योतियामऊ गांव में गरीबी का दंश झेल रही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गांव की रेखा ने सावित्री समूह का गठन कर उसी समूह से नया व्यवसाय शुरू करने के लिए कदम बढ़ाया। धीरे-धीरे महिलाओं ने खरपतवार (सरपत) से सूप बनाना व बांस के बर्तन बनाने शुरू कर दिए। महिलाओं की मेहनत रंग लाई। गांव का यह समूह जनपद ही नहीं अन्य जनपदों में भी अपनी पहचान बना रहा है।

एशियाई खेलों के लिए 12 सालों में पहली बार भारतीय टीम में जगह नहीं बना पायी दीपिका

समूह की अध्यक्ष रेखा ने राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के अंतर्गत अपने गांव की दस महिलाओं के साथ मिलकर वर्ष 2012 में सरस्वती महिला स्वयं सहायता समूह का गठन किया। शुरुआती दिनो में सभी महिलाओं ने कुछ दिन बीस – बीस रुपये व कुछ दिन 50-50 रुपये जमा कर समूह का संचालन शुरू किया। पैसे जुटाने के बाद बैंक से समूह के नाम ऋण लेकर सरपत की सेरई व हरे बांस खरीदे और सेरई से सूप व बांस से डलिया, पंखे, बसोलिया, गंगा पारी दउरी आदि का निर्माण शुरू किया।

राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के हरीश कुमार ने इनके उत्पादों की बिक्री के लिए रायबरेली जनपद के अतिरिक्त कानपुर, फतेहपुर, बांदा, अमेठी आदि जनपदों के व्यापारियों से संपर्क कर सहयोग किया।अब इनके उत्पादों की मांग बढ़ रही है।

Tata-Birla नहीं, ये है हिंदुस्तान की सबसे पुरानी कंपनी, जहाज बनाने से शुरुआत

Smartphone से लेकर Refrigerator तक, जानिए 1 अप्रैल से क्या होगा सस्ता और महंगा

रिश्वत लेने के आरोपी सब इंस्पेक्टर को पकड़ने 1 KM तक दौड़ी एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम

समूह की सचिव संगीता देवी ने बताया कि अब प्रतिमाह दस हजार रुपए की आमदनी प्रति सदस्य हो जाती है। समूह से जुड़ी सविता बताती हैं कि इससे उन्हें नई राह मिली है। वह खुद की कमाई से घर का खर्च चला रही हैं। रामवती,सुशीला, गुड़िया आदि का कहना है कि इससे उन्हें खुद को साबित करने का मौका मिला है। वह अब दूसरों पर निर्भर नहीं हैं।

Show comments
Share.
Exit mobile version