नई दिल्ली। ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमाइकोसिस के बाद अब एक और नई समस्या खड़ी हो गई है. दरअसल, कोविड-19 से रिकवर होने के बाद मरीजों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस यानी बोन डेथ के मामले देखने को मिल रहे हैं. यह एक ऐसी मेडिकल कंडीशन है जिसमें इंसान की हड्डियां गलने लगती हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक एवैस्कुलर नेक्रोसिस के मुंबई में तीन मामले सामने आए हैं, जिन्हें साइंटिफिकली रूप से दर्ज कर लिया गया है. डॉक्टर्स इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि अगले कुछ दिनों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस के मामले बढ़ सकते हैं. एवैस्कुलर नेक्रोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस के बीच स्टेरॉयड को एक बड़ा फैक्टर माना जा रहा है. यानी बीमारी से उबरने के लिए प्रयोग में लाए जा रहे स्टेरॉयड इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.

स्टडी में बताया गया है कि कोरोना इंफेक्शन से मरीजों को बचाने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स प्रीडनीसोलोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है, जिसके चलते एवैस्कुलर नेक्रोसिस मामलों में तेजी आई है.

 

ये स्टडी दो तरह के ट्रेंड को अंडरलाइन करती है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना से रिकवरी के दौरान ऐसे मरीजों को कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स प्रीडनीसोलोन के 758mg के डोज दिए गए थे. जबकि एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसी कंडीशन 2,000mg से ज्यादा डोज से ट्रिगर हो सकती है.

 

क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस?

एवैस्कुलर नेक्रोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां तक पहुंचने वाले खून की सप्लाई स्थायी या अस्थायी रूप से बंद हो जाती है. खून की सप्लाई बंद होने से हड्डियों के ऊतर मर जाते हैं और हड्डियां गलना शुरू कर देती हैं.

एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण

  • इस बीमारी में जांघ या कूल्हे की हड्डियों में तेज दर्द होता है.
  • चलने में दिक्कत हो सकती है.
  • जोड़ों में बहुत दर्द रहने लगता है.
  • इसलिए शरीर में इस तरह के लक्षणों को बारीकी से देखें और समय पर जांच जरूर कराएं.

 

एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण

एवैस्कुलर नेक्रोसिस स्टेरॉयड के अत्यधिक इस्तेमाल के अलावा बड़ी इंजरी, एल्कोहल के ज्यादा सेवन, ब्लड डिसॉर्डर, रेडिएशन ट्रीटमेंट, कीमोथैरेपी, पैंक्रियाटाइटिस, डीकम्प्रेशन डिसीज, ऑटोइम्यून डिसीज और एचआईवी के वजह से भी हो सकता है.

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