तीसरी लहर। कोरोना की तीसरी लहर और ओमिक्रॉन के खतरे के बीच मंगलवार को देश को 3 अच्छी खबरें मिली हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो नई वैक्सीन और एक एंटीवायरल दवा के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है. मंत्रालय ने जिन दो वैक्सीन को मान्यता दी है, उनमें पहली कोर्बिवैक्स और दूसरी कोवोवैक्स है. तीसरी दवा एक एंटी वायरल गोली है जिसका नाम मोलनुपिराविर है. गोली को दूसरे अन्य कैप्सूल की तरह पानी के साथ लिया जा सकता है. भारत में अब तक कोरोना से लड़ने के लिए कुल 8 वैक्सीन को मंजूरी मिल चुकी है.

आठ वैक्सीन में कोविशील्ड, कोवाक्सिन, रूस की स्पुतनिक वी, अमेरिका की फाइजर वैक्सीन और जॉनसन एंड जॉनसन को भी इमरजैंसी के लिए अनुमति दी जा चुकी है लेकिन फिलहाल ये उपलब्ध नहीं हैं. इसके अलावा जायडस कैडिला वैक्सीन को भी मान्यता मिल चुकी है और अब कोर्बिवैक्स और कोवोवैक्स भी आ गई है.

कोर्बिवैक्स को हैदराबाद की दवा कंपनी ने तैयार किया है
कोर्बिवैक्स पहली प्रोटीन बेस्ड वैक्सीन है जिसे हैदराबाद की दवा कंपनी बायोलॉजिकल-E ने तैयार किया है. इसे बनाने के लिए कोरोनावायरस पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन के चुनिंदा अंशों का इस्तेमाल किया गया है. कोरोना वायरस में मौजूद स्पाइक प्रोटीन ही वायरस को किसी इंसान के शरीर में मौजूद कोशिकाओं तक पहुंचाने में मदद करता है. वायरस इसके बाद शरीर में संक्रमण बढ़ाता है और बीमारी पैदा कर देता है. वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोरोनावायरस का ये स्पाइक प्रोटीन को लैब में बदलाव करके वैक्सीन के साथ इंसान के शरीर में डाला जाता है तो ये एक असरदार इम्यून सिस्टम तैयार करता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोरोनावायरस का ये स्पाइक प्रोटीन को लैब में बदलाव करके वैक्सीन के साथ इंसान के शरीर में डाला जाता है तो ये एक असरदार इम्यून सिस्टम तैयार करता है, जिससे वायरस को फैलाने वाले प्रोटीन का असर कम या ख़त्म कर देता है इससे मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचने से बच जाता है. कोर्बिवैक्स वैक्सीन के असर को देखते हुए भारत सरकार ने इस वैक्सीन के 30 करोड़ डोज का ऑर्डर 1500 करोड़ रुपये में इस साल अप्रैल में ही दे दिया था. इस हिसाब से वैक्सीन की एक डोज़ की कीमत करीब 500 रुपये हो सकती है. सबसे अच्छी बात ये है कि इस वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी रखा जा सकता है…जिससे इसे भारत के दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचाना आसान होगा. कोर्बिवैक्स भारत में 100 प्रतिशत टीकाकरण  के साथ बूस्टर डोज की जरूरतों को पूरा करने में अहम साबित होगी.

कोवोवैक्स को नोवावैक्स और सीरम इंस्टिट्यूट ने मिलकर बनाया है
कोवोवैक्स नैनोपार्टिकल तकनीक से तैयार की गई है. इसे अमेरिका की नोवावैक्स और कोविशील्ड बनाने वाली सीरम इंस्टिट्यूट ने मिलकर तैयार किया है. इसे कोरोना वायरस में एक जीन को बदल कर बनाया गया है. जीन बदलने के बाद इसे बाक्यूलोवायरस कहा जाता है. ये बाक्यूलोवायरस जब किसी संक्रमित सेल या कोशिका में जाता है तो स्पाइक प्रोटीन पैदा करता है. ये स्पाइक प्रोटीन आपस में मिल कर स्पाइक बनाते हैं. इस तरह का स्पाइक प्रोटीन नैनो पार्टिकल यानी बहुत सूक्ष्म रूप से जमा हो जाता है और शरीर में एंटीबॉडी पैदा करता है जो वायरस को निष्क्रिय बना देती है. ये दो डोज वाली वैक्सीन है और दो डोज का अंतर 21 दिन है.

तीसरी दवा मोल्नुपिराविर जो एक ओरल पिल्स यानी पानी से ली जाने वाली एंटीवायरल दवा है. ये दवा एक प्रोटीन इन्हिबटर (protease inhibitor) यानी प्रोटीन अवरोधक है जो कोरोना वायरस से ऊपरी हिस्सों पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन को निष्क्रिय कर देती है. इसके अलावा ये गोली शरीर की कोशिकाओं में वायरस के फैलाव को रोकने का काम करती है, जिससे मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचने से बच जाता है. अब तक की रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ये दवा मौत के ख़तरे को करीब 50 प्रतिशत कम कर देती है. इसके अलावा ये गोली कोविड के हर वैरिएंट के खिलाफ कारगर होगी, लेकिन इस दवा को लेने की सबसे बड़ी शर्त ये है कि इसे कोरोना के लक्षणों की शुरुआत के तुरंत बाद पांच दिनों तक हर 12 घंटे में लेना होगा.

मोल्नुपिराविर फाइज़र कंपनी की पैक्सलोविड की तरह एंटी वायरल ड्रग है और पैक्सलोविड की कीमत करीब 40 हजार रुपये है लेकिन भारत में मोल्नुपिराविर दवा को देश की 13 कंपनियां बनाएंगी जिससे इसकी कीमत कम होने की उम्मीद है.

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