अहमदाबाद। राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के गृहनगर राजकोट के सिविल अस्पताल में एक महीने के भीतर दिसम्बर में 134 बच्चों की मौत होने की खबर है जिनमें से 77 नवजात बच्चे डेढ़ किलो से कम वजन के थे। 134 में से 96 समय से पहले (प्री मेच्योर) और कम वजन के थे। राजकोट के सिविल अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग में पिछले एक साल में 1235 बच्चों की मृत्यु हुई है। रविवार को जब इस बारे में राज्य के सीएम विजय रुपाणी से मीडिया ने सवाल पूछा तो वे सवालों का जवाब दिए बना चलते बने।

राजकोट के सिविल अस्पताल में जनवरी में 122 बच्चों, फरवरी में 105 बच्चों, मार्च में 88 बच्चों, अप्रैल में 77 बच्चों, मई में 78 बच्चों, जून में 88 बच्चों, जुलाई में 84 बच्चों, अगस्त में 100 बच्चों, सितम्बर में 118 बच्चों, अक्टूबर में 131 बच्चों की मौत, नवम्बर में 110 बच्चों और दिसम्बर में 134 बच्चों की मौत हुई है। इसी तरह अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 3 महीने के भीतर 256 बच्चों की मौत हुई है। अक्टूबर 2019 में 94, नवम्बर में 74 और दिसम्बर में 85 बच्चे मारे गए। इसी तरह स्वास्थ्य मंत्री के सूरत शहर स्थित सिविल अस्पताल में दिसम्बर में 66 नवजात शिशुओं की मौत हुई है।

अहमदाबाद सिविल अस्पताल के सुपरिटेंडेंट जीएस राठौड़ ने बताया कि दिसम्बर में 455 नवजात आईसीयू में भर्ती हुए थे जिनमें से 85 की मौत हो गई। इसी तरह राजकोट में भी 111 मासूमों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि राजकोट में नवजातों की औसतन मृत्यु दर 70-80 है। इसकी सबसे प्रमुख वजह नवजातों का देरी से भर्ती होना है। गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में राजकोट एकमात्र केंद्र है, जहां बेहतर चिकित्सा के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। अस्पताल प्रशासन इन मौतों की बात स्वीकार तो कर रहा है लेकिन किसी चिकित्सीय लापरवाही से साफ इनकार कर रहा है। राजकोट में सिविल अस्पताल में मरने वाले सभी बच्चे नवजात थे। अस्पताल के एनआईसीयू में ढाई किलो से कम वजन वाले बच्चों को बचाने की व्यवस्थाएं और क्षमता ही नहीं है।

राजकोट के सरकारी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि बच्चों के लिए अस्पताल में एक एनआईसीयू है लेकिन इसमें डेढ़ किलो वजन वाले बच्चों को बचाने की क्षमता और सुविधा नहीं है। एनआईसीयू में बच्चों पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए। बच्चा अगर कम वजन का है, तो उसके लिए कम से कम एक नर्स और ज्यादा-ज्यादा दो नर्स मौजूद होनी चाहिए। अस्पताल में 10 नवजातों के लिए सिर्फ एक नर्स है। राजकोट के सरकारी अस्पताल में जिन 134 बच्चों की मौत हुई है, उनमें 96 प्री-मैच्योर डिलीवरी से हुए थे और कम वजन वाले थे। इनमें से 77 बच्चों का वजन डेढ़ किलो से भी कम था। अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार 2018 में 4321 बच्चों को भर्ती किया गया था। इनमें से 20.8 फीसदी यानी 869 की मौत हो गई। 2019 में 4701 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। नवंबर महीने तक 18.9 प्रतिशत बच्चों की मौत हो गई। दिसंबर के महीने में 386 बच्चों को भर्ती कराया गया था, इनमें से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। इसके साथ ही अस्पताल में बच्चों की मौत का प्रतिशत 28 फीसदी तक पहुंच गया है।

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