नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकारी मंडल ने सोमवार को श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित कर कहा कि यह राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक है। संघ ने दो अन्य प्रस्तावों में भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने एवं राज्य के पुनर्गठन के निर्णय का स्वागत करने के साथ ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को भारत का नैतिक व संवैधानिक दायित्व करार दिया है।

उल्लेखनीय है कि बेंगलूरु में प्रस्तावित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा को कोरोना वायरस के मद्देनजर स्थगित कर दिया गया था। ऐसे में कुछ चुनिंदा पदाधिकारियों की मौजूदगी में राम मंदिर, सीएए और जम्मू कश्मीर को लेकर तीन प्रस्ताव पारित किये गये।

श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण – राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक

संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का मानना है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय से सम्पूर्ण राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुरूप श्रीराम जन्मस्थान, अयोध्या, पर भव्य मंदिर के निर्माण की सब बाधाएं दूर हो गई हैं। राम जन्मस्थान के संबंध में 9 नवंबर 2019 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, वह न्यायिक इतिहास के महानतम निर्णयों में से एक है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा रामभक्तों की भावनाओं के अनुरूप ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नामक एक नए न्यास का गठन, शासन-नियंत्रित न्यास के रूप में न करके इसे समाज द्वारा संचालित बनाना व प्रशासन को सहयोगी की भूमिका में लाना सरकार की दूरदर्शिता का परिचायक है। जिन पूज्य संतों के मार्गदर्शन में यह आन्दोलन चला, उन्हीं के नेतृत्व में ही मंदिर निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने का निर्णय लेना भी प्रशंसनीय ह। अ.भा.का.मं. का यह भी विश्वास है कि यह न्यास श्रीराम जन्मस्थान पर भव्य मंदिर और परिसर क्षेत्र के निर्माण-कार्य को शीघ्रातिशीघ्र संपन्न करेगा। कार्यकारी मंडल का यह भी विश्वास है कि इस पुनीत कार्य में सभी भारतीय एवं सम्पूर्ण विश्व के रामभक्त सहभागी होंगे।

यह निश्चित है कि इस पावन मंदिर का निर्माण-कार्य संपन्न होने के साथ-साथ समाज में मर्यादा, समरसता, एकात्मभाव और मर्यादापुरुषोत्तम राम के जीवनादर्शों के अनुरूप जीवन जीने का भाव बढ़ेगा तथा भारत विश्व में शांति, सद्भाव और समन्वय स्थापित करने के अपने दायित्व को पूर्ण कर सकेगा।

भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने एवं राज्य के पुनर्गठन का निर्णय – एक स्वागतयोग्य कदम

संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, सम्मानीय राष्ट्रपति के संवैधानिक आदेशों के द्वारा भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने तथा तदुपरांत संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन के पश्चात् अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के निर्णय का हृदय से स्वागत करता है। राज्य का जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख ऐसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठन का निर्णय भी एक सराहनीय कदम है। अ.भा.का.मं. इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के लिए केंद्र सरकार एवं राष्ट्रहित में समर्थन देकर अपनी परिपक्वता का परिचय देनेवाले सभी राजनैतिक दलों का अभिनन्दन करता है। प्रधानमंत्री तथा उनके साथियों द्वारा इस विषय में दिखाई गई राजनैतिक इच्छाशक्ति व दूरदर्शिता प्रशंसनीय है।

अ.भा.कार्यकारी मंडल का सुनिश्चित मत है कि हाल ही में लिये गए निर्णय एवं उनके क्रियान्वयन से संवैधानिक तथा राजनैतिक विसंगतियां समाप्त हो जाएंगी। कार्यकारी मंडल का यह भी विश्वास है कि यह निर्णय भारत की अवधारणा ‘एक राष्ट्र – एक जन ‘ के अनुरूप है और संविधान निर्माताओं द्वारा प्रस्तावना में वर्णित आकांक्षा ‘हम भारत के लोग ……’ को पूर्ण करने वाला है।

अ.भा. कार्यकारी मंडल का यह भी मत है कि राज्य के पुनर्गठन के साथ तीनों क्षेत्रों में रहनेवाले सभी वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नई संभावनाएं खुली हैं। राज्य के पुनर्गठन से लद्दाख क्षेत्र की जनता की दीर्घकालीन आकांक्षाओं की पूर्ति हुई है, साथ ही उनके समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अ.भा. कार्यकारी मंडल आशा करता है कि विस्थापितों एवं शरणार्थियों की अपेक्षाओं की भी शीघ्र पूर्ति की जाएगी। कश्मीर घाटी के विस्थापित हिन्दू समाज के सुरक्षित एवं सम्मानपूर्ण पुनर्वसन की प्रक्रिया शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ करनी चाहिए।

अ.भा. कार्यकारी मंडल देशवासियों का आवाहन करता है कि संविधान की सर्वोच्चता एवं मूलभावना को स्थापित करने के लिए वे राजनैतिक मतभिन्नताओं से ऊपर उठें और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख की विकासयात्रा में बढ़-चढ़कर योगदान करते हुए राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को पुष्ट करें। अ.भा. कार्यकारी मंडल सरकार का भी आवाहन करता है कि क्षेत्र के नागरिकों की सभी प्रकार की आशंकाओं को दूर कर परिणामकारी, न्यायसंगत शासनव्यवस्था और आर्थिक विकास के द्वारा उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति करे।

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 – भारत का नैतिक व संवैधानिक दायित्व

संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, पड़ोसी इस्लामिक देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया की जटिलताओं को समाप्त कर सरल बनाने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम – 2019 पारित करने पर भारतीय संसद तथा केंद्र सरकार का हार्दिक अभिनंदन करता है।

सरकार द्वारा संसद में चर्चा के दौरान तथा बाद में समय-समय पर यह स्पष्ट किया गया है कि इस कानून द्वारा भारत का कोई भी नागरिक प्रभावित नहीं होगा। कार्यकारी मंडल सन्तोष व्यक्त करता है कि इस अधिनियम को पारित करते समय उत्तर-पूर्व क्षेत्र के निवासियों की आशंकाओं को दूर करने के लिए आवश्यक प्रावधान भी किये गए हैं। यह संशोधन इन तीन देशों में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए इन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने के लिए है तथा किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापस लेने के लिए नहीं है। परंतु, जिहादी–वामपंथी गठजोड़, कुछ विदेशी शक्तियों तथा सांप्रदायिक राजनीति करनेवाले स्वार्थी राजनैतिक दलों के समर्थन से, समाज के एक वर्ग में काल्पनिक भय एवं भ्रम का वातावरण उत्पन्न करके देश में हिंसा तथा अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहा है।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन कृत्यों की कठोर शब्दों में निंदा करता है तथा संबंधित सरकारों से यह मांग करता है कि देश के सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय एकात्मता को खंडित करने वाले तत्वों की समुचित जांच कराकर उपयुक्त कार्रवाई करें।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल समाज के सभी वर्गों, विशेषकर जागरूक एवं जिम्मेदार नेतृत्व का आवाहन करता है कि इस विषय को तथ्यों के प्रकाश में समझें एवं समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने और राष्ट्रविरोधी षड्यंत्रों को विफल करने में सक्रिय भूमिका निभाएं।

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