नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि चीफ जस्टिस का कार्यालय आरटीआई (सूचना के अधिकार) एक्ट के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने पिछले 4 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे।

जस्टिस संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता की ओर से फैसला लिखा है। जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस डीवाई ने अलग से फैसला लिखा है, जिसमें उन्होंने भी चीफ जस्टिस के दफ्तर को आरटीआई एक्ट के दायरे में बताया है।

सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और जन सूचना अधिकारियों ने 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के आदेशों के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि कोई भी अस्पष्टता का सिस्टम नहीं चाहता है लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को तबाह भी नहीं कर सकता है। कोई भी अंधेरे में नहीं रहना चाहता है और न ही अंधेरे में रहना चाहिए।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 जनवरी, 2010 को अपने फैसले में कहा था कि चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई एक्ट के दायरे में आता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी जज का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेदारी है।

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