नई दिल्ली। असम में एनआरसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि एनआरसी डाटा में आधार की तरह गोपनीयता बनाए रखी जाएगी। इसी साल 31 अगस्त को फ़ाइनल एनआरसी प्रकाशित होगी।
कोर्ट ने कहा है कि एनआरसी डाटा का अब दोबारा वेरिफिकेशन नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि तीन दिसंबर 2004 के बाद जन्मे उन लोगों को एनआरसी में शामिल नहीं किया जाएगा, जिनके माता-पिता संदिग्ध वोटर रहे हैं या जिन्हें ट्रिब्यूनल ने विदेशी करार दिया है या जो केस का सामना कर रहे हों। ट्रिब्यूनल की ओर से अवैध अप्रवासी घोषित करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
पिछले आठ अगस्त को एनआरसी मामले पर राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता के बयान पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई हमारे आदेश को लेकर क्या आलोचना कर रहा है। हम इसमें नहीं जाएंगे क्योंकि इसका कोई अंत नही है, हम एनआरसी के प्रकाशित होने की प्रकिया की मॉनिटरिंग करते रहेंगे।
पिछले 23 जुलाई को एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने की समय सीमा 31 अगस्त तक बढ़ा दी थी। पहले यह समय सीमा 31 जुलाई तक थी। हालांकि कोर्ट ने एनआरसी ड्राफ्ट में जगह पाए लोगों की भी दोबारा समीक्षा की केंद्र और राज्य सरकार की मांग ठुकरा दी थी।
पिछले 19 जुलाई को केंद्र सरकार ने कहा था कि अवैध घुसपैठियों को हर हाल में अपने देश वापस जाना ही होगा। केंद्र सरकार ने कहा था कि हम भारत को विश्व की रिफ्यूजी कैपिटल नहीं बना सकते। केंद्र और राज्य सरकार ने एनआरसी का कार्यकाल बढ़ाने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि कोर्ट 31 जुलाई की डेडलाइन में बदलाव करे। एनआरसी की डेडलाइन की भविष्य में कोई तारीख दे।
केंद्र सरकार ने कहा था कि से लोगों की पहचान संबंधी दस्तावेजों की अभी वेरिफिकेशन करनी बाकी है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि कोआर्डिनेटर ने इस मामले में अच्छा काम किया है। हम लाखों लोगों के मामले में काम कर रहे हैं। बांग्लादेश के बॉर्डर के पास लाखों लोग गलत तरीके से एनआरसी में नाम में आ गए है। जिन लोगों का नाम जोड़ा गया है वो अवैध घुसपैठिए हैं।
पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई तक वेरिफिकेशन के काम निपटाने के लिए कहा था। पिछले 30 मई को कोर्ट ने कहा था कि 31 जुलाई को एनआरसी के प्रकाशन की समयसीमा में कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों ने एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराने के लिए दावा किया है उन्हें पूरा मौका दिए ही सुनवाई कर ली जाए।
सुनवाई के दौरान प्रतीक हजेला की तरफ से कहा गया था कि आपत्तियां पर सुनवाई छह मई से शुरू हुई है। बहुत से मामलों में आपत्ति दर्ज कराने वाले उपस्थित नहीं हो रहे हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि अगर वे नहीं उपस्थित हो रहे हैं तो कानून अपना काम करेगा। आप अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कीजिए और उपस्थित नहीं होने वालों के मामलों पर कानून के मुताबिक काम कीजिए।