नई दिल्ली। सिर्फ 79 साल और…यानी 2100 में भारत के 12 तटीय शहर करीब 3 फीट पानी में चले जाएंगे. क्योंकि लगातार बढ़ती गर्मी से ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलेगी. उससे समुद्री जलस्तर बढ़ेगा. फिर क्या…चेन्नई, कोच्चि, भावनगर जैसे शहरों का तटीय इलाका छोटा हो जाएगा. तटीय इलाकों में रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाना होगा. क्योंकि किसी भी तटीय इलाके में तीन फीट पानी बढ़ने का मतलब है, काफी बड़े इलाके में तबाही. आइए जानते हैं कि ये खुलासा किसने और कैसे किया?
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने सी लेवल प्रोजेक्शन टूल बनाया है. जिसका आधार है इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की हाल ही में आई रिपोर्ट. इस रिपोर्ट में कहा भी गया है कि 2100 तक दुनिया प्रचंड गर्मी बर्दाश्त करेगी. कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण नहीं रोका गया तो तापमान में औसत 4.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी. अगले दो दशकों में ही तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. जब इतना तापमान बढ़ेगा, तो जाहिर सी बात है कि ग्लेशियर पिघलेंगे. उसका पानी मैदानी और समुद्री इलाकों में तबाही लेकर आएगा.
नासा के प्रोजेक्शन टूल में दुनियाभर का नक्शा बनाकर दिखाया गया है कि किस साल दुनिया के किस हिस्से में कितना समुद्री जलस्तर बढ़ेगा. आईपीसीसी हर 5 से 7 साल में दुनियाभर में पर्यावरण की स्थिति की रिपोर्ट देता है. इस बार की रिपोर्ट बहुत भयावह है. यह पहली बार है जब नासा ने पूरी दुनिया में अगले कुछ दशकों में बढ़ने वाले जलस्तर को मापने का नया टूल बनाया है. यह टूल दुनिया के उन सभी देशों के में समुद्री जलस्तर को माप सकता है, जिनके पास तट हैं.
भारत के जिन 12 शहर साल 2100 तक आधा फीट से लेकर करीब पौने तीन फीट समुद्री जल में समा जाएंगे. क्योंकि तब तक इतनी गर्मी बढ़ेगी कि समुद्र का जलस्तर भी बढ़ेगा. सबसे ज्यादा जिन शहरों को खतरा है, वो हैं- भावनगरः यहां 2100 तक समुद्र का जलस्तर 2.69 फीट ऊपर आ जाएगा, जो कि पिछले साल तक 3.54 इंच ऊपर उठा था. कोच्चिः यहां समुद्री पानी 2.32 फीट ऊपर आ जाएगा, जो पिछले साल तक 2.36 इंच ऊपर उठा था. मोरमुगाओः यहां पर समुद्री जलस्तर 2.06 फीट तक बढ़ जाएगा, जो कि पिछले साल तक 1.96 इंच ऊपर उठा था.
इसके बाद जिन शहरों को ज्यादा खतरा है, वो हैं- ओखा (1.96 फीट), तूतीकोरीन (1.93 फीट), पारादीप (1.93 फीट), मुंबई (1.90 फीट), ओखा (1.87 फीट), मैंगलोर (1.87 फीट), चेन्नई (1.87 फीट) और विशाखापट्टनम (1.77 फीट). यहां पर पश्चिम बंगाल का किडरोपोर इलाका जहां पिछले साल तक समुद्री जलस्तर के बढ़ने का कोई खतरा महसूस नहीं हो रहा है. वहां पर भी साल 2100 तक आधा फीट पानी बढ़ जाएगा. जो कि परेशान करने वाली बात है. क्योंकि इन सभी तटीय इलाकों में कई स्थानों पर प्रमुख बंदरगाह है. व्यापारिक केंद्र हैं. मछलियों और तेल का कारोबार होता है. समुद्री जलस्तर बढ़ने से आर्थिक व्यवस्था को करारा नुकसान पहुंचेगा.
अगले दस सालों में इन 12 जगहों पर समुद्री जलस्तर कितना बढेगा. यह अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है. कांडला, ओखा और मोरमुगाओ में 3.54 इंच, भावनगर में 6.29 इंच, मुंबई 3.14 इंच, कोच्चि में 4.33 इंच, तूतीकोरीन, चेन्नई, पारादीप और मैंगलोर में 2.75 इंच और विशाखापट्टनम में 2.36 इंच. किडरपोर में अगले दस साल तक खतरा नहीं है. लेकिन भविष्य में बढ़ते जलस्तर का नुकसान इस तटीय इलाके को भी उठाना होगा.
अगले 20 साल में धरती का तापमान निश्चित तौर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से होगा. IPCC की नई रिपोर्ट में 195 देशों से जुटाए गए मौसम और प्रचंड गर्मी से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जो प्रचंड गर्मी पहले 50 सालों में एक बार आती थी, अब वो हर दस साल में आ रही है. यह धरती के गर्म होने की शुरुआत है.
IPCC की इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है कि पिछले 40 सालों से गर्मी जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी गर्मी 1850 के बाद के चार दशकों में नहीं बढ़ी थी. साथ ही वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है कि अगर हमनें प्रदूषण पर विराम नहीं लगाया तो प्रचंड गर्मी, बढ़ते तापमान और अनियंत्रित मौसमों से सामाना करना पड़ेगा. इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक फ्रेडरिके ओट्टो ने कहा कि जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि अभी की दिक्कत है. यह पूरी दुनिया के हर कोने पर असर डाल रही है. भविष्य में तो और भी भयानक स्थिति बन जाएगी अगर ऐसा ही पर्यावरण रहा तो.
फ्रेडरिको ओट्टो ने कहा कि लगातार तापमान बढ़ने से कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और तुर्की के जंगलों में लगी आग की घटनाओं में कमी नहीं आएगी. ऐसा आग को संभालना मुश्किल हो जाएगा. अगर बर्फ खत्म हो जाए और जंगल जल कर खाक हो जाएं तो आपके सामने पानी और हवा दोनों की दिक्कत हो जाएगी. कितने दिन आप इस स्थिति में जीने की उम्मीद कर सकते हैं. ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी तो समुद्री जलस्तर बढ़ेगा. कई देश तो यूं ही डूब जाएंगे जो समुद्र के जलस्तर से कुछ ही इंच ऊपर हैं. जंगलों में लगी आग से निकले धुएं की वजह से उस देश में और आसपास के देशों में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाएगा.
हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. यह उत्सर्जन धरती पर मौजूद इंसानों की वजह से हो रहा है. अगर इसे हमने 2050 तक घटाकर 500 करोड़ टन तक नहीं किया तो यह हमारे लिए घातक साबित हो जाएगा. लेकिन वर्तमान गति से चलते रहे तो साल 2050 तक प्रदूषण, प्रचंड गर्मी, बाढ़ जैसी दिक्कतों का आना दोगुना ज्यादा हो जाएगा. इसे रोकना जरूरी है, नहीं तो अगली पीढ़ियों को एक बर्बाद धरती मिलेगी.
IPCC की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि पहले 50 सालों कैलिफोर्निया और कनाडा जैसी प्रचंड गर्मी की घटनाएं होती थी. लेकिन अब तो हर दस साल में ऐसी एक घटना देखने को मिल रही है. चाहे वह कैलिफोर्निया के जंगलों में आग लगना हो, या ऑस्ट्रेलिया में. तुर्की के जंगलों का जल जाना हो या कनाडा के एक पूरे गांव का गर्मी की वजह से भष्म हो जाना. 1900 की तुलना के बाद से बाढ़ 1.3 गुना ज्यादा खतरनाक हो चुके हैं. 6.7 गुना ज्यादा पानी का बहाव होता है. यानी ज्यादा बाढ़.
नासा के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कहा कि नासा का यह सी लेवल प्रोजेक्शन टूल दुनियाभर के नेताओं, वैज्ञानिकों को यह बताने के लिए काफी है कि अगली सदी तक हमारे कई देश जमीनी क्षेत्रफल में छोटे हो जाएंगे. क्योंकि समुद्र का जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ेगा, उसे संभाल पाना मुश्किल होगा. हमें पर्यावरण को ध्यान में रखकर विकास करना होगा. नहीं तो उदाहरण सबके सामने हैं. कई द्वीप डूब चुके हैं, कई अन्य द्वीपों को समुद्र अपनी लहरों में निगल जाएगा