इस बार के बिहार चुनाव में कई जाने-माने चेहरे नई पहचान के साथ चुनावी दंगल में उतर रहे हैं. बिहार बीजेपी के जाने-पहचाने चेहरों में शुमार रामेश्वर चौरसिया ऐसे ही एक नेता हैं. इस बार चौरसिया लोक जन शक्ति पार्टी के सिंबल पर सासाराम से ताल ठोक रहे हैं.
आज चौरसिया भले ही बगावत पर उतर आए हों, और कमल छोड़ बंगले का रुख कर लिए हों, लेकिन कभी वो दौर था जब वो बिहार बीजेपी के दिग्गज नेता हुआ करते थे, और उनका प्रचार करने के लिए प्रमोद महाजन जैसे हैवीवेट नेता आया करते थे.
बात 15 साल पुरानी है. अक्टूबर 2005 में मात्र सात महीने के बाद दूसरी बार बिहार में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे थे. इससे पहले फरवरी 2005 के चुनाव में बीजेपी-जेडीयू बिहार में लालू को सत्ता से बेदखल करते करते चूक गई थी. लेकिन इस बार मानो आर-पार की लड़ाई थी.
इसी चुनाव में बीजेपी नेता रामेश्वर प्रसाद चौरसिया अपनी परंपरागत सीट नोखा से ताल ठोक रहे थे. फरवरी 2005 का चुनाव तो वे जीत चुके थे, उन्हें भी यकीन न था कि मात्र 6-7 महीने बाद ही उन्हें एक बार फिर से जनता के दरबार में जाना होगा. लेकिन अक्टूबर-नवंबर की गुलाबी सर्दियों में बिहार में चुनाव का पारा रोजाना चढ़ रहा था. रामेश्वर प्रसाद चौरसिया एक बार अपना किला बचाने के लिए फिर से जी जान से लगे थे.
बिहार के सासाराम शहर में भारत के शासक रहे शेरशाह सूरी का मकबरा है. इसी सासाराम से 25 किलोमीटर की दूरी पर एक कस्बा है नोखा. ये इलाका बिहार विधानसभा का एक क्षेत्र भी है. इसी सीट पर रामेश्वर प्रसाद चौरसिया अपना राजनीतिक भाग्य आजमा रहे थे. 2004 में केंद्र की सत्ता से बाहर हो चुकी बीजेपी के लिए ये चुनाव सम्मान का बिषय बन गया था. पार्टी ने अपने बड़े चेहरों को बिहार प्रचार करने के लिए भेज दिया था.
नोखा में 6 अक्टूबर 2005 को रामेश्वर चौरसिया के पक्ष में बीजेपी के दो दिग्गज रैली करने आ रहे थे. पहले शख्स थे बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले प्रमोद महाजन (दिवंगत) और दूसरा नाम था पूर्व पीएम वाजपेयी की मंत्रिपरिषद में सूचना प्रसारण मंत्री रह चुके रविशंकर प्रसाद.
तय वक्त पर रैली शुरू हो गई. मंच पर थे प्रमोद महाजन, रविशंकर प्रसाद, रामेश्वर चौरसिया और बिहार बीजेपी के दूसरे नेता. बीजेपी नेता तत्कालीन आरजेडी सरकार पर जमकर हमला किए जा रहे थे. लोग तालियां बजा रहे थे. सभा में जोश का माहौल था. इसी दौरान भीड़ को संबोधित करने की बारी आई रविशंकर प्रसाद की.
माइक के सामने आए रविशंकर प्रसाद
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी माइक के सामने पहुंचे और अपना संबोधन शुरू कर दिया. अबतक सब कुछ सामान्य था. बीजेपी समर्थक बीच बीच में नारेबाजी कर नेताओं का हौसला बढ़ा रहे थे. कुछ देर में रविशंकर प्रसाद का भाषण खत्म हो गया.
कट्टा लेकर बिजली की तेजी से मंच पर चढ़ा शख्स
भाषण समाप्त कर रविशंकर प्रसाद मंच पर अपने स्थान पर बैठे ही थे कि एक शख्स बिजली की तेजी से मंच पर चढ़ा. नौजवान से दिखने वाले इस शख्स के हाथ में देसी कट्टा था, उसने आव देखा न ताव, पलक झपकते ही रविशंकर प्रसाद पर गोली चला दी. धांय…की आवाज कर बैरल से गोली निकली और रविशंकर प्रसाद को जा लगी. मंच पर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया.
मंच पर ही गिर पड़े प्रसाद
लेकिन अगले ही क्षण वहां कोहराम था. वो कौन था, कैसे आया, मंच तक कैसे पहुंचा किसी को समझ में नहीं आ रहा था. गोली रविशंकर प्रसाद की बायीं बांह में लगी और उनके हाथ से खून की एक धारा बह निकली और वे मंच पर ही गिर गए. इस दौरान मंच पर प्रमोद महाजन और रामेश्वर चौरसिया भी मौजूद थे. लेकिन ये दोनों नेता सुरक्षित थे.
मंच पर बेहद अस्त-व्यस्तता की स्थिति थी. रैली देखने आई भीड़ मंच की और दौड़ पड़ी और हमलावर पर टूट पड़ी. इधर कुछ लोग रविशंकर प्रसाद को तुंरत उठाकर वहां से भागे.
रविशंकर प्रसाद को तुरंत सासाराम के एक स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया. यहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया. इसके बाद वे जिस हेलिकॉप्टर से नोखा आए थे, उसी से तत्काल उन्हें पटना ले जाया गया.
वो टीवी न्यूज का दौर था…
तब देश में टीवी न्यूज का दौर शुरू हो गया था. सोशल मीडिया भारत में था ही नहीं और न ही एंड्रायड वाले स्मार्ट फोन लोगों की जेब में होते थे. कुछ ही घंटों में रविशंकर प्रसाद पर हमले की खबर टीवी चैनलों की ब्रेकिंग पट्टी पर बड़े बड़े अक्षरों में चलने लगी. इसी के साथ ही दिल्ली से लेकर पटना तक हड़कंप मंच गया.
बिहार में राष्ट्रपति शासन था और राज्यपाल थे बूटा सिंह. राजभवन की घंट्टियां घनघनाने लगीं. हर आदमी यही जानना चाह रहा था कि रविशंकर प्रसाद कहां हैं, कैसे हैं?
पटना में रविशंकर प्रसाद के लिए अस्पताल तैयार था. उन्हें तुरंत एडमिट किया गया. डॉक्टरों ने रविशंकर प्रसाद के हाथ में सर्जरी की. अच्छी बात ये थी कि उनकी चोट हाथ तक ही सीमित थी. इलाज के बाद रविशंकर प्रसाद की स्थिति सामान्य हो गई.
इधर रविशंकर प्रसाद को गोली मारने के बाद 20 साल का हमलावर वहीं पर खड़ा रहा. पलक झपकते ही लोग उसपर टूट पड़े. लाठी-डंडों और लात घूसों से उसे खूब मारा गया. आखिरकार पुलिस बच बचाकर उसे रैली स्थल से बाहर ले गई. इलाज के लिए उसे पीएमसीएच ले जाया गया. लेकिन तबतक इस शख्स की पिटाई की वजह से मौत हो चुकी थी. बिहार के तत्कालीन डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा ने तब कहा था कि अस्पताल पहुंचते-पहुंचते हमलावर की मौत हो चुकी थी.
चौरसिया ने ही बिहार विधानसभा को भंग करने को दी थी चुनौती
बता दें कि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने फरवरी 2005 के चुनाव में किसी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने पर विधानसभा को भंग कर दिया था. उनके इस फैसले को रामेश्वर चौरसिया ने ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
बीजेपी ने कानून व्यवस्था से जोड़ दिया मुद्दा
इस घटना को बिहार के इस चुनाव में बड़ा प्रचार मिला. पूर्व डिप्टी पीएम एलके आडवाणी ने इस घटना को लालू राबड़ी राज की कुव्यस्था और ‘जंगल राज’ से जोड़ा और कहा था वो नक्सलवादी क्षेत्र है फिर भी वहां स्थानीय प्रशासन ने पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध नहीं कराई. अक्टूबर 2005 के इस चुनाव में रामेश्वर चौरसिया ने इस सीट से तीसरी बार जीत हासिल की थी.