वाराणसी। कोरोना संक्रमण के कारण धर्म नगरी काशी में इस बार भरत-मिलाप का आयोजन नहीं किया जाएगा. बीते 475 साल में ऐसा पहली बार होगा कि काशी में श्रीराम और भरत के मिलाप में कोई महामारी बैरियर बन रही है. कोरोना के कहकर को देखते हुए नाटी इमली के आयोजकों फैसला किया कि इस बार भरत-मिलाप का आयोजन नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि इससे पहले विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का आयोजन न किए जाने की खबर आई थी. नाटी इमली के लीला समिति के प्रबंधक मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि नाटी इमली के ऐतिहासिक मैदान में 475 वर्षों से हो रहे भरत-मिलाप का आयोजन इस बार नहीं होगा. बस सांकेतिक तौर पर अयोध्या भवन में रामलीला से लेकर भरत-मिलाप तक की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि 10 अक्टूबर को मुकुट पूजा होगी.
मेघा भगत किया था पहला आयोजन
इस आयोजन की शुरुआत 475 साल पहले हुई थी. तब इसका आयोजन मेघा भगत ने किया था. ऐसी किंवदंती है सपने में मेघा भगत को मर्यादा पुरुषोत्तम के दर्शन हुए थे. इस सपने के बाद ही मेघा भगत ने रामलीला का आयोजन करना शुरू किया था. भक्तों के बीच आज भी ऐसी मान्यता है कि भरत-मिलाप के दौरान कुछ पल के लिए श्रीराम के दर्शन यहां होते हैं. यही वजह है कि नाटी इमली के मैदान में महज कुछ मिनट के भरत-मिलाप को देखने के लिए हजारों दर्शकों की भीड़ यहां हर साल जुटती रही है.
223 बरस से शामिल होते रहे हैं काशी नरेश
काशी में आयोजित होने वाले इस भरत-मिलाप का एक आकर्षण काशी का राज परिवार भी है. पिछले 223 बरस से काशी नरेश नाटी इमली के मैदान में शाही अंदाज में इस लीला में शामिल होते रहे हैं. पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि 1796 में वह पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे. तब से उनकी पांच पीढ़ियां इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही हैं.

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