नई दिल्ली। राज्यसभा में रविवार को सरकार ने कहा कि बिना किसी दवा के कोरोना के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित करने का प्रयास करना घातक साबित हो सकता है। इससे कई बीमारियां जन्म ले सकती हैं और बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है।
संसद में स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने एक लिखित उत्तर में कहा कि कोरोना महामारी की शुरुआत में जिन भी देशों ने स्वाभाविक हर्ड इम्युनिटी के लिए संक्रमण को फैलने दिया, वहां कई बीमारियों के साथ ही मृत्युदर भी बहुत अधिक रही और आखिर में उन देशों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। उनसे पूछा गया था कि क्या राज्य सरकारें कोरोना महामारी से लड़ने के लिए हर्ड इम्युनिटी की रणनीति पर चल रही हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के प्रसार की चेन को तोड़ने के लिए केंद्र की तरफ से राज्यों के लिए परामर्श और दिशानिर्देश जारी किए गए। महामारी को रोकने के लिए योजनाएं और प्रक्रियाओं के बारे में भी राज्यों को जानकारी दी गई।
हर्ड इम्युनिटी क्या है?
हर्ड इम्युनिटी से मतलब किसी क्षेत्र विशेष में आबादी के बहुत बड़े हिस्से 60 से 80 फीसद सदस्यों के शरीर में किसी वायरस से लड़ने की क्षमता विकसित होने से है। ऐसा तब होता है जब लोग संक्रमण की चपेट में आकर ठीक हो जाते हैं। इससे उनके शरीर में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडीज पैदा हो जाती है। धीरे-धीरे जब बड़ी आबादी में एंटीबॉडीज पैदा होती है तो फिर वायरस को फैलने के लिए नया होस्ट (व्यक्ति) नहीं मिलता और उसकी चेन टूट जाती है। इस तरह वायरस धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके अलावा वैक्सीन देकर भी लोगों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जाती है।
अश्विनी चौबे ने बताया कि कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए अगस्त में 2.39 करोड़ नमूनों की जांच की गई। देशभर में 18 सितंबर तक कुल 6.17 करोड़ नमूनों की जांच की जा चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि जुलाई में 1.05 करोड़, जून में 49.93 लाख, मई में 29.37 लाख, अप्रैल में 8.64 लाख और मार्च में कुल 33 हजार नमूनों की जांच की गई थी। स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने उच्च सदन को बताया कि एक बार जब कोरोना वैक्सीन बनकर तैयार हो जाएगी तब उसके भंडारण, वितरण और देशभर में उसके रखरखाव पर नजर रखने के लिए इलेट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क प्रणाली को और पुख्ता बनाया जा रहा है। कोरोना वैक्सीन के वितरण की पुख्ता व्यवस्था बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेषज्ञों की उच्चाधिकार समिति बनाई गई है। उन्होंने कहा कि देश में सात कंपनियों को प्री-क्लीनिकल टेस्ट, परीक्षण और विश्लेषण के लिए कोरोना वैक्सीन बनाने की अनुमति दी गई है। इनमें सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बायोटेक और कैडिला हेल्थकेयर शामिल हैं।
अश्विनी चौबे ने कहा कि कोरोना महामारी का व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है, इसका पता लगाने के लिए किसी तरह का अध्ययन नहीं किया गया है। स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने राज्यसभा में बताया कि महामारी के दौरान लोगों को मनोवैज्ञानिक मदद देने के लिए कई तरह की पहल जरूर की गई है। इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है। स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने कहा कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में प्रति 10 लाख आबादी पर संक्रमितों और मृतकों की संख्या बहुत कम है। उन्होंने कहा कि अभी कोई वैक्सीन नहीं आई। इसको देखते हुए स्वच्छता, मास्क का प्रयोग और शारीरिक दूरी बनाए रखने संबंधी उपायों से ही महामारी को रोका जा सकता है।
अश्विनी चौबे ने सदन को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद सरकार ने सरकारी और निजी क्षेत्र के कोरोना अस्पतालों के निरीक्षण के लिए विशेषज्ञ समितियों का गठन किया है। ये समितियां अस्पतालों का निरीक्षण करने के साथ ही उनका मार्गदर्शन भी करेंगी।