नैनीताल। लद्दाख में भारत और चीन की गद्दारी के बाद लद्दाख से लेकर उत्तराखंड व अरुणाचल की सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं की सक्रियता के बीच देश के रक्षा विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. मोहन चंद्र भंडारी ने भारत को चाणक्य नीति की याद दिलाई है। उनका कहना है कि भारत के लिए यह समय केवल भावनात्मक बातें करने का नहीं बल्कि डटे रहने और चाणक्य नीति से काम लेने का है।
करगिल युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड गौरव सहित अनेक सम्मान प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. भंडारी ने चीन को एक धूर्त देश बताने के साथ ही कहा कि भारत और चीन के संबंध हजारों वर्ष पुराने व ऐतिहासिक हैं। फिर भी धूर्त देश, दूसरे धूर्त देशों के ही करीब रहता है जबकि भारत चीन का 100 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है और भारत के पक्ष में व्यापार घाटा काफी अधिक है। डा. भंडारी ने 15-16 जून की घटना के बाद इधर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य के बाद चीन के पूरी गलवान घाटी को अपना बताने पर टिप्पणी की कि इससे चीन के मंसूबे व अड़ियल रवैया साफ हो गया है। चीन मानने वाला नहीं है।
उन्होंने 16 जून के बाद चार दिन तक सरकारी तंत्र, मीडिया, विदेश व रक्षा मंत्रालय आदि द्वारा सही स्थिति बताने पर साधी गई चुप्पी पर सवाल उठाते हुए इसे चीन की हिम्मत बढ़ाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि 1962 के युद्ध के पश्चात भी और पहले भी गलवान घाटी कभी भी चीन के पास नहीं रही। हालांकि उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सेनाओं के लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक दोनों देशों की सेनाओं के आमने-सामने आने के साथ सीमा पर तनावपूर्ण हालात महीनों तक भी चल सकता है। इसके बावजूद यह भी सच्चाई है कि दोनों देश युद्ध नहीं चाहते।
उन्होंने कहा कि भारत व चीन की कई अपनी ताकतें और कमजोरियां हैं। चीन की फौज की संख्या भले हमसे अधिक हो लेकिन उसे वियतनाम के अलावा कहीं लड़ने का अनुभव नहीं है। भारत की सेना 12 से 18-19 हजार फीट की ऊंचाई तक लड़ने की क्षमता वाली विश्व की सर्वश्रेष्ठ व इकलौती सेना है। भारत आयात अधिक करता है, निर्यात कम। इसकी भरपाई होनी भी आसान नहीं है। यानी चीन के सामान का बहिष्कार भी सोच समझकर ही किया जाना चाहिए। इस मसले को राजनीतिक, कूटनीतिक व आर्थिक तरीकों से हल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को चीन के मुकाबले में अर्थशास्त्र, राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों की बात करने वाले चाणक्य की नीति का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी जो भी सीमा पर हुआ है, उसके पीछे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी व शी जिंनपिंग का पूरा हाथ है।
उन्होंने कहा कि चीन भारत की 38 हजार वर्ग किमी का भूभाग अक्साई चिन, 453 वर्ग किमी बाडाहोती में लेकर बैठा है और अरुणाचल में 90 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल पर अपना दावा बताता है। इसके अलावा 5000 वर्ग किमी हिस्सा 1963 में पाकिस्तान ने भारतीय हिस्सा चीन को दिया है।
यह ऐतिहासिक तथ्य और भारतीय भूल हैं विवाद की जड़
उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों में भारत ने काफी गलतियां की हैं। 1950 में चाउ एन लाई ने वार्ता की बात कही थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उसे मुंह नहीं लगाया। तब चाओ ने खुद कहा था कि चीन अक्साई चिन का एक हिस्सा लेकर इसके बदले बाडाहोती-चमोली व अरुणाचल का हिस्सा छोड़ देगा। तब भारत ने दूरदर्शिता से काम नहीं लिया था। इससे 1965 की लड़ाई टाली जा सकती थी। भारत से दो वर्ष बाद 1949 में कम्यूनिस्ट देश के रूप में अस्तित्व में आये चीन की सोच भारत के बारे में अंग्रेजी उपनिवेश के रूप में है। इसलिए वह अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारत के साथ मैकमोहन लाइन, जॉनसन लाइन और अफगानिस्तान के साथ डूरंड लाइन आदि किसी भी सीमा को नहीं मानता। वह तिब्बत को अपनी हथेली तथा लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान व अरुणाचल को अपनी पांच अंगुलियां मानता है और वह हथेली के अपने कब्जे में आने के बाद अंगुलियों को भी लेने की बात करता है।