आश्विन शुक्ल पक्ष की शारदीय नवरात्रि रविवार, 17 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो रहे हैं. नवरात्रि के पहले मां शैलपुत्री की पूजा का विधान होता है. नवरात्रि में पहले दिन पूजा-पाठ में कई विशेष बातों का ध्यान रखना पड़ता है. इसका समापन 24 अक्टूबर को होगा. इस बार की नवरात्रि आठ दिन की होगी. नवरात्रि के 25 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा.
कैसे करें मां शैलपुत्री की उपासना?
नवरात्रि के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना होती है. हिमालय की पुत्री होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है. पूर्व जन्म में इनका नाम सती था और ये भगवान शिव की पत्नी थी. सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था, इसी कारण सती ने अपने आपको यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया था.
अगले जन्म में यही सती शैलपुत्री बनी और भगवान शिव से ही विवाह किया. माता शैलपुत्री की पूजा से सूर्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं. मां शैलपुत्री को गाय के शुद्ध घी का भोग लगाना चाहिए. इससे अच्छा स्वास्थ्य और मान सम्मान मिलता है.
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री के विग्रह या चित्र को लकड़ी के पटरे पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें. मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु अति प्रिय है, इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पण करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं. मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और कन्याओं को उत्तम वर मिलता है.
नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं. शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. जीवन के समस्त कष्ट क्लेश और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग सुपारी मिश्री रखकर मां शैलपुत्री को अर्पण करें.
कलश स्थापना का मुहूर्त
कलश की स्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को की जाती है. इस बार प्रतिपदा रात्रि 09.08 तक रहेगी. कलश की स्थापना रात्रि 09.08 के पूर्व कर जाएगी. इसके चार शुभ मुहूर्त होंगे. सुबह 07.30 बजे से 09.00 बजे तक. फिर दोपहर 01.30 बजे से 03.00 बजे तक. इसके बाद दोपहर 03.00 बजे से 04.30 बजे तक. फिर शाम 06.00 बजे से 07.30 बजे तक.