हजारीबाग।  कांग्रेस कार्यालय कृष्ण बल्लभ आश्रम में सरकारी गाइड लाइन का अनुपालन करते हुए अमर शहीद भगवान बिरसा मुंडा की 121 वीं शहादत दिवस पर उन्हे याद कर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित तथा माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजली दी गई ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिला अध्यक्ष अवधेश कुमार सिंह नें उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिरसा मुंडा भारत के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक थे। अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम मे उनकी ख्याति जग जाहिर थी।

केवल 25 वर्ष के अपने जीवन काल मे उन्होंने इतने मुकाम हासिल किए कि हमास इतिहास सदैव उनका ऋणी रहेगा ।

इनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले में उलिहातु गांव मे हुआ था । बिरसा मुंडा पढ़ाई मे होशियार थे इसलिए लोगों ने उनके पिता से उनका दाखिला जर्मन स्कूल में करने को कहा । पर इसाई स्कूल में प्रवेश लेने के लिए इसाई धर्म अपनाना जरूरी हुआ करता था तो बिरसा का नाम परिवर्तन कर बिरसा डेविस रख दिया कुछ समय तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने जर्मन स्कूल छोड़ दिया । क्योंकी बिरसा का मन बचपन से ही साहूकारों के साथ-साथ ब्रिटिश के ससकार के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह की भावना पनप रही थी।

इसके बाद बिरसा नें जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ लोगों को जागृत किया तथा आदिवासियों की परम्पराओं को जीवित रखने के कई प्रयास किया । 1884 में बारिश न होने से छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी । बिरसा नें पुरे समर्पण से लोगों की सेवा की । उन्होंने लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकल कर बीमारियों का इलाज करने के प्रति जागरूक किया । सभी आदिवासियों के लिए वे धरती आबा यानी धरती पिता हो गए ।1895 में बिरसा नें अंग्रेजो की लागू की गई जमींदारी प्रथा और राजस्व के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जंगल जमीन की लड़ाई छेड़ी । यह सिर्फ कोई बगावत नही थी बल्कि ये आदिवासी स्वाभिमान स्वतंत्रता और संस्कृति को बचाने का संग्राम था।

बिरसा ने अबुआ दिशुम अबुआ राज यानी हमारा देश हमारा राज का नारा दिया । देखते-देखते ही सभी आदिवासी जंगल पर दावेदारी के लिए इकट्ठे हो गए । अंग्रेज सरकार की पांव उखड़ने लगे और भ्रष्ट जमींदार व पूंजीवादी बिरसा के नाम से कांपते थे । जनवरी 1900 में उलिहातु के नजदीक डोमबाड़ी पहाड़ी पर बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे तभी अंग्रेज सिपाहियों ने चारो तरफ से घेर लिया । अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच लड़ाई हुई । औरतें बच्चों समेत बहुत लोग मारे गए । अंत मे बिरसा भी 03 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर मे गिरफ्तार कर लिए गए । और आज के ही दिन 09 जुन 1900 को बिरसा मुंडा ने रांची के कारागार में आखरी सांस ली ।

मौके पर शशि मोहन सिंह, मिथिलेश दुबे, उपाध्यक्ष सह मीडिया प्रभारी निसार खान, ओम झा, मकसुद आलम, नगर अध्यक्ष ओमप्रकाश गोप, मंसुर आलम, मनोज कुमार मोदी, मो. अफरोज आलम, अजित कुमार सिंह, उमर खान, भैया असीम कुमार, राशिद खान, निशांत कुशवाह, मो. शिबली, कैलाश पति देव, शशि भुषण, अनिल यादव, राजेश महतो, ओमप्रकाश सिन्हा के अतिरिक्त कई कांग्रेसी कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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