गोड्डा। वर्मी कंपोस्ट या केंचुआ खाद तैयार करने का हुनर सीख कर गोड्डा के दो सौ से अधिक किसान आज जैविक खेती कर रहे हैं। अदाणी फाउंडेशन की मदद से प्रशिक्षण पाकर केंचुआ खाद का उत्पादन कर रहे गोड्डा के तकरीबन दो सौ से अधिक किसानों के एक संगठन ने स्वरोजगार का एक बेहतरीन मॉडल स्थापित करने की दिशा में पहल कर दिया है। केंचुआ खाद उत्पादन कर रहे किसानों के इस संगठन में गोड्डा, पोडैयाहाट और महागामा के किसान शामिल हैं।

दरअसल, वर्मी कंपोस्ट या केचुआ खाद एक जैविक उर्वरक है जो जैविक अपशिष्ट पदार्थों या सरल भाषा में कहें तो सड़े-गले गोबर व खर-पतवार को सड़ाकर उसे केचुआ द्वारा विघटित करके बनाया जाता है। केंचुआ खाद में नाइट्रोजन, पोटाश और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो पौधों के विकास के लिए अति आवश्यक तत्व हैं। केचुआ खाद के इस्तेमाल से मिट्टी को उर्वरता तो मिलती ही है मिट्टी की गुणवत्ता भी लंबे समय तक बरकरार रहती है। सबसे बड़ी बात, केचुआ खाद आज रासायनिक उर्वरक के दुरुपयोग एवं दुषित खान-पान के चलते लोगों के स्वास्थ्य स्तर में लगातार हो रही गिरावट को रोकने का बेहतर विकल्प के तौर पर साबित हो सकता है।

केचुआ खाद उत्पादन के प्रशिक्षण से जुड़े अदाणी फाउंडेशन के अधिकारी मनोज प्रभाकर बताते हैं कि विगत तीन सालों से मोतिया, डुमरिया, बक्सरा व सोनडिहा पंचायत के लगभग 80 किसान प्रशिक्षण लेकर केचुआ खाद उत्पादन कर रहे हैं, जिनकी संख्या अब 200 को पास कर चुकी है। हालांकि, ज्यादातर किसान अब तक इस खाद का इस्तेमाल अपने खेतों में उर्वरक के तौर पर कर रहे हैं लेकिन कुछ युवा किसानों ने इसे व्यवसाय के तौर पर अपनाया है और यह आमदनी का एक अच्छा जरिया बनता जा रहा है।

अदाणी फाउंडेशन की ओर से गौपालक तथा पशुपालक किसानों को प्रशिक्षण के साथ-साथ विशेष रूप से तैयार बैग तथा केंचुआ भी उपलब्ध कराया जाता है। मनोज बताते हैं कि बारह बाई छह फीट के एक बैग में तकरीबन एक हजार किलो केचुआ खाद तैयार करने में तीन माह का समय लगता है, जिसकी लागत पन्द्रह सौ के आस-पास है, जबकि एक हजार किलो केचुआ खाद का अनुमानित बाजार भाव लगभग पांच से छह हजार रुपये है।

डुमरिया निवासी उमाकांत ने अदाणी फाउंडेशन से प्रशिक्षण लेकर केंचुआ खाद उत्पादन को व्यवसाय के तौर पर अपनाया है। उमाकांत बताते हैं कि फिलहाल उन्हें सिर्फ केचुआ खाद बेचकर महीने के पांच से आठ हजार तक की आमदनी हो रही है। बढ़ती मांग को देखते हुए उमाकांत को अनुमान है कि उनकी आमदनी जल्द ही कई गुणा बढ़ने वाली है क्योंकि बंगाल के चाय बगान के कुछ व्यापारियों ने उनसे भारी मात्रा में केचुआ खाद खरीदने की इच्छा जाहिर की है, और कीमत भी स्थानीय खरीदारों से काफी बेहतर मिलने की संभावना है।

अदाणी फाउंडेशन के सीएसआर अधिकारी सुबोध सिंह कहते हैं, वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन से जुड़े फायदों से परिचित होने के बाद गोड्डा के गोपालक व पशुपालकों में एक नई उर्जा देखने को मिली है। आज गोड्डा के गौपालक किसान सिर्फ दूध के लिए गोवंश का पालन नहीं कर रहे बल्कि वे केचुआ खाद के अतिरिक्त गोमुत्र खाद एवं गोमुत्र से बनने वाले कीटनाशक इत्यादि का भी प्रशिक्षण ले रहे हैं। सुबोध मानते हैं कि आने वाले समय में लोगों का जोर जैविक खेती पर रहेगा जिसके लिए केचुआ खाद समेत जैविक पदार्थों से तैयार कीटनाशक तथा अन्य उत्पादों की मांग सबसे अधिक होगी। ऐसे में वर्मी कंपोस्ट स्वरोजगार का बेहतरीन साधन साबित होने वाला है और इस कार्य में अदाणी फाउंडेशन ग्रामीणों का भरपूर सहयोग कर रहा है।

 

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