गुमला। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा है कि ‘मैं शिक्षित उसी को मानता हूं जो अच्छा इंसान हो। क्योंकि एक अच्छा इंसान ही एक अच्छा अभिभावक,अच्छा पिता,अच्छा डाक्टर हो सकता है।’ उन्होंने शिक्षा को सशक्त हथियार बताते हुए आदिवासी समाज से अपने बच्चों को पढ़ाने की अपील की, ताकि वे एक अच्छा व शिक्षित इंसान बन सकें।

शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द गुमला के नक्सल प्रभावित क्षेत्र स्थित विकास भारती बिशुनपुर परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कोई डिग्री से नहीं अपने स्वभाव व आचरण से अच्छा इंसान होता है। शिक्षा का दान और शिक्षा का ज्ञान सबसे पवित्र कार्य है।

राष्ट्रपति कोविन्द ने सर्वप्रथम अपने संबोधन में आदिवासी समाज के लोगों का अभिवादन करते हुए कहा कि यहां आने का सौभाग्य आज मुझे प्राप्त हुआ है। वर्ष 2016 में मैं बिहार के गवर्नर के रूप में रांची आया था। मैने विकास भारती बिशुनपुर के बारे में बहुत कुछ सुना था। रांची में ही संस्था के सचिव अशोक भगत से मुलाकात हुई। तब  मैंने बिशुनपुर आने की इच्छा उनके सामने प्रकट की।

उन्होंने कहा कि 2018 में पुणे से रांची आया था। मैने अशोक भगत से बिशुनपुर जाने की बात कही। उन्होंने स्वागत किया था पर बीच में ही मैं पटना से दिल्ली पहुंच गया। फिर वर्ष 2019 आया। विकास भारती बिशुनपुर आने का प्रोग्राम बना, मगर दो दिनों तक हुई मुसलाधार बारिश ने उन्हें रांची से ही वापस लौटना पड़ा। इस बार मेरा सपना और इच्छा दोनों साकार हो गया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति होने के नाते हमारी कई जिम्मेदारियां हैं। कुछ व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैं। जिसके कारण वर्ष में दो-तीन बार ही किसी राज्य में जाना संभव हो पाता है।

राष्ट्रपित कोविन्द ने टाना भगत आंदोलन के प्रणेता जतरा भगत और महान वीरांगना सिनगी-दई की इस भूमि को त्याग,बलिदान और संघर्ष की भूमि बताते हुए कहा कि यह धरती मानवीय गुणों को धारण करने वाली भूमि है। जिनकी प्रेरणा ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। मगर जो सीखना नहीं चाहते वे भूत,वर्तमान और भविष्य में भी नहीं सीखते। जबरन दूसरे पर विचारों को थोपने जैसी विकृतियां हमारे समाज में विद्यमान हो गई हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गांधीजी कहते थे कि यदि मेरी बात आपको अच्छी लगती है तो उसे अपना लीजिए। भूलों का भाव देश को जोड़ता है। मानव-मानव में अंतर होता है। यह अंतर आचरण से उत्पन्न होता है। अपने आचरण से खूद को बेहतर इंसान साबित करें। देश बदल रहा है, हमें भी बदलना चाहिए।

कोविंद ने विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत की सराहना करते हुए कहा कि वे एक साधन संपन्न परिवार से आते हैं। यदि वे चाहते तो कोई भी मुकाम हासिल कर सकते थे। मगर उन्होंने सेवा का मार्ग चुना। वे इस जंगल में आकर विकास और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए आ गए। विकास भारती के प्रयास के इस क्षेत्र में और जनजीवन में व्यापक बदलाव आया है। इनकी सेवा भावना सभी के लिए प्रेरणा-स्त्रोत है।

ठेठ आदिवासियों से मिलना चाहते हैं:

अपना भाषण रोकते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द पद्मश्री अशोक भगत की ओर मुखातिब हुए। उन्होंने कहा कि यहां बैठे लोग आदिवासी समाज के शुभचिंतक हैं। मगर मैं ठेठ आदिवासियों से भी मिलना चाहता हूं। इस पर भगत ने कहा कि जरूर, इस कार्यक्रम के बाद आप उन्हीं से मिलेंगे। इस पर श्री कोविंद ने कहा कि पहले ही मिला देते तो अच्छा रहता।

टाना भगतों और स्कूली बच्चों से मिलकर बहुत खुश हुए:

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने विकास भारती के विभिन्न सेवा प्रकल्पों का निरीक्षण किया। महिला समूहों द्वारा निर्मित उत्पादों, मल्हारगिरी, बढ़ई गिरी, कृषि से संबंधित कई स्टॉलों पर जाकर एक-एक चीज को समझने का प्रयास किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने असुर आदिम जनजाति समुदाय द्वारा प्राचीन विधि से लोहा बनाने का जीवंत प्रदर्शन देख बहुत प्रभावित हुए।

टाना भगत भी बड़ी संख्या में राष्ट्रपति से मिलने का इंतजार कर रहे थे। तिरंगा और चरखे के साथ उपस्थित टाना भगतों के बीच जब राष्ट्रपति उनके बीच पहुंचे तो वे भावुक हो गए। रामनाथ कोविन्द टाना भगतों स्कूली बच्चों से मिलकर बहुत खुश हुए। राष्ट्रपति के साथ राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू, केंद्रीय आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा, सांसद सुदर्शन भगत, सांसद समीर उरांव, झारखंड सरकार के मंत्री डा.रामेश्वर उरांव भी मौजूद थे। सभी लोगों ने इस आगमन की स्मृति को बनाये रखने के लिए पौधरोण भी किया।

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