रांची। हमेशा से परंपरागत तरीके से खेती करने वाली रांची के ओरमांझी की रहनेवाली महिला किसान सुनीता देवी ने नहीं सोचा था कि सिंचाई के तरीके में बदलाव लाने से उत्पादन में बहुत फ़र्क आयेगा और पानी की भी समस्या नहीं रहेगी। सुनीता ने सिंचाई की कठिनाई को टपक सिंचाई से दूर करते हुए दूसरे किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है। आज सुनीता ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के तहत झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर टपक सिंचाई से खेती शुरू कर अच्छी आमदनी कर रही हैं। सुनीता कहती हैं, टपक सिंचाई योजना से उनकी जिंदगी में काफी बदलाव आ गया। हमारे पास सिंचाई के लिए सिर्फ कुआँ था, जो अक्सर सूख जाता था। जिस कारण हम सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर ही आश्रित थे। लेकिन, अब ड्रिप के लग जाने के बाद खेती करना काफी आसान हो गया है। आज एक साथ कई तरह की फसल की खेती कर सालाना 1.5 लाख तक की आमदनी कर लेती हूं।
कम मेहनत, कम लागत और कम पानी में दोगुना हो रहा मुनाफा
सुनीता की ही तरह झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना ने राज्य की हजारों महिला किसानों के जीवन में बदलाव की नई कहानी लिखी है। पश्चिमी सिंहभूम के तांतनगर प्रखण्ड के चिरची गांव निवासी संकरी परंपरागत तरीके से खेती कर सालाना 20-25 हज़ार रुपये अर्जित करती थी, अब वह टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर सालाना 80-90 हज़ार रुपये का मुनाफा कमा रही हैं ।
कृषि कार्यों से उद्यमी बनते कृषक
राज्य के 9 जिलों के 30 प्रखण्ड में इस परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। अब तक पूरे राज्य में करीब 11800 किसान सूक्ष्म टपक सिंचाई एवं अन्य सुविधाओं को लेकर अच्छे उत्पादन से ज्यादा कमाई कर उद्यमिता के पथ पर हैं। अबतक इस परियोजना से जुड़ने के लिए करीब 23 हजार किसानों का पंजीकरण किया जा चुका है। राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में किसानों को सुविधाओं से लैस करना है, ताकि झारखण्ड के कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी उन्हें सिंचाई समेत किसी प्रकार की दिक्कत ना हो। इसी कड़ी में राज्य के किसानों को टपक सिंचाई के जरिए कम पानी में बेहतर फसल उपजाने के लिए प्रशिक्षण एवं सुविधा मुहैया करायी जा रही है। जिसका उद्देश्य राज्य के कृषकों को स्थायी एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि के जरिए सब्जी उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज करवाना है। सरकार अपने उद्देश्य में सफल भी हो रही है, जिससे हजारों कृषक जो पहले साल में एक फसल पर निर्भर रहते थे, अब साल में तीन-चार फसल उपजाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।