खूँटी। जिला के इदरी में बनने वाली रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय का कार्य बन्द नहीं करने एवं खूँटी से अन्यत्र नहीं ले जाने के संबंध में जेविएम के पूर्व जिलाध्यक्ष दिलीप मिश्रा ने मुख्यमंत्री के आप्त सचिव को आवेदन दिया।

उन्होंने कहा कि खूँटी में बनने वाली रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय जिसका शिलान्यास 12 नवम्बर 2017 को राज्य के तत्कालिन राज्यपाल के द्वारा किया गया था।

जमीन का अधिग्रहण हो चुका है, ग्रामीण एवं रैयत स्वेच्छा से जमीन देने का कार्य किया है। रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय जो 75 एकड़ जमीन में एवं जिसकी लागत करीब 207 करोड़ का प्राक्कलन था। खूँटी जिलावासी पूर्व में 404 एकड़ जमीन नोलेज सिटी के लिए देने को तैयार है, खूंटी जिला के साथ राज्य सरकार भी अनदेखी कर रही है। राज्य सरकार पहले खूँटी वासी को नोलेज सिटी के नाम से जमीन लिए जमीन लेकर नॉलेज सिटी नहीं बनाना झारखण्ड सरकार की निम्न सोच को प्रदर्शित करती है। एक तरफ नॉलेज सिटी नहीं बनाया गया दूसरे तरफ उसी जमीन में रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय का निर्माण कराया जाना था, जिसके निर्माण के आवंटित राशि में लगभग 10 करोड़ खर्च हो चुका है। सरकार को बताना चाहिए कि खूँटी जिलावासियों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों ? रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय के निर्माण से यहाँ शैक्षणिक वातावरण में वृद्धि होती तथा लोगों के बीच रोजगार का अवसर प्राप्त होता यहाँ के विद्यार्थी जो उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए दूसरे राज्य जाते हैं।

उस पर रोक लगता तथा यहाँ के अभिभावकों को जो आर्थिक बोझ होता है बच्चों के पढ़ाई में, उसमें भी कमी आती। माननीय मुख्यमंत्री जी से आग्रह है कि खूँटी की जनता के हित में अने पूर्व के आदेश पर विचार कर रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय को खूँटी से अन्यत्र नहीं ले जाने संबंधी आदेश निर्गत करने की कृपा करने के लिए निवेदित किया।सरकार आती-जाती है लेकिन

समाज के हित में एक बार जो निर्णय लिया जाता है, उसे राजनीति द्वेष्य से नहीं बदला जाये जो कि इंटरनेशनल कॉरीडोर में ऐसी बदलाव से यहाँ के छात्र-छात्राओं पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। तथा सरकार के प्रति आम लोगों का विश्वास में भी कटौती हो जाती है। रक्षा शक्ति विश्व विद्यालय के निर्माण करीब 35% राशि खर्च हो चुका, वह आम जनता का पैसा या है सरकार का नहीं, उतनी राषि का दुरपयोग होना राज्यहित में अच्छी नहीं है और ऐसी परम्परा का शुरुआत झारखण्ड जैसे राज्यों में नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो कोई भी ग्रामीण किसी प्रोजेक्ट के लिए जमीन देने में आनाकानी करेंगे। क्योंकि जिस प्रोजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया है, वह धरातल पर दिखाई देनी ही चाहिए। ऐसा नहीं होने पर लोगों का विश्वास सरकार के प्रति नहीं रह पायेगी एवं कोई भी योजना धरातल पर नहीं उत्तर सकेगा।

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