रांची। प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया ( पीएलएफआई) का 15 लाख का इनामी जीदन गुड़िया का रांची से लेकर उड़ीसा बॉर्डर तक एक छत्र राज चलता था। किसी से भी मिलने जाने से पहले वह अपने बॉडीगार्ड के साथ जाता था।वह भरोसा किसी पर नहीं करता था। संगठन को मजबूत करने और लोगों को साथ लेकर चलने की इसमें अद्भुत कला थी।
ग्रामीणों का भी सहयोग करता था। विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि वह ग्रामीण क्षेत्र में मेडिकल कैंप भी लगाया करता था। गरीबों की काफी मदद करता था ।किसी की समस्या होने पर वह उसका निराकरण भी करता था। कई लोगों के लिए वह मसीहा के रूप में काम करता था, तो कई लोगों के लिए वह काल का रूप था। खूंटी, रांची, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, हजारीबाग, चाईबासा में पीएलएफआई का नेतृत्व करता था। पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप भी उसके फैसले को आखिरी फैसला मानते थे। उसके मारे जाने के बाद संगठन को काफी झटका लगा है। अब संगठन को छोड़कर कई लोग चले जाएंगे या सरेंडर कर देंगे। उसकेे मारे जाने पर तपकारा के कोचा करंजटोली गांव में मातम का माहौल है।
मृतक जिदन गुडिया के बड़े भाई पौंदे गुडिया ने बताया कि जिदन बचपन में तपकारा के हाई स्कूल में पढ़ाई करता था। पढ़ाई पूरी करने के बाद खेतीबाड़ी करने लगा। फिर वह रनिया में टेलर का काम शुरू किया। अपने हाथों से ग्रामीणों के लिए कपड़े सिलाई करता था। मशीन पर जब उसके हाथ लगते थे, तो कुछ मिनट में कपड़े तैयार कर देता था, जिससे ग्रामीणों की भीड़ उसके पास लगी रहती थी और यहीं कारण था कि ग्रामीण उसे पहचानने लगे थे। मगर, रनिया में रहने के दौरान जिदन गुड़िया आम जिंदगी जीना छोड़कर पीएलएफआई संगठन में जुड़ गया। जिस हाथ से वह मिनटों में कपड़े सिला करता था। उसी हाथ से सैकड़ों गोलियां चलाया करता था, जिसका परिणाम हुआ कि वह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया।
मां-पिता के मौत होने के बाद भी जिदन घर नहीं आया था। साल 2007 में झारखंड लिबरेशन टाइगर के पीएलएफआई में बदलने के बाद जीदन गुड़िया का नाम काफी तेजी से उभरा था। पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप के बाद संगठन में दूसरे नंबर पर स्थान रखने वाले जीदन गुड़िया के खिलाफ 34 साल की उम्र में कुल 129 कांडों को अंजाम देने का आरोप था। रांची, खूंटी, चाईबासा में सक्रिय जीदन गुड़िया के खिलाफ 28 हत्याओं को अंजाम देने का आरोप है। साल 2007 में पीएलएफआई के गठन से लेकर उसे मजबूत बनाने तक में जीदन की अहम भूमिका थी। तपकरा इलाके में ग्रामीणों के बीच छोटी मोटी मदद पहुंचाने के कारण वो ग्रामीणों के बीच काफी लोकप्रिय भी था। ऐसे में कई बार पुलिस के गतिविधियों की सूचना जीदन गुड़िया को मिल जाती थी और वह पुलिस के हाथों बच निकलता था।
जीदन गुड़िया को राजनीति में आने का शौख था। जीदन ने खुद फरार होने की वजह से अपनी पत्नी को राजनीति में आगे किया। इसके बाद पत्नी को मुखिया बनवाया। बाद में जिला परिषद चुनाव में भी जीदन गुड़िया ने अपनी पत्नी को उतारा। साल 2017 में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जीदन गुड़िया ने अपनी जॉनिका गुड़िया को निर्विरोध जिला परिषद सदस्य निर्वाचित कराया था। पीएलएफआई के खिलाफ संगठन की दबिश लगातार बढ़ रही थी। संगठन के एके 47 समेत कई हथियार पुलिस ने जब्त किए थे। हथियारों की सप्लायी का नेटवर्क भी ध्वस्त होने लगा था। ऐसे में जीदन गुड़िया ने मुरहू में अवैध हथियार फैक्टरी खोल ली थी, जहां घातक हथियार स्वयं अपनी मॉनिटरिंग में बनावाता था। जिदन पर हत्या, अपहरण, लेवी, रंगदारी के 129 मामले दर्ज थे।
उल्लेखनीय है कि खूंटी जिले के मुरहू थाना क्षेत्र में सोमवार की सुबह पुलिस के साथ मुठभेड़ में पीएलएफआई का 15 लाख का इनामी जोनल कमांडर जिदन गुड़िया मारा गया था ।पुलिस ने घटनास्थल से एक एके-47 रायफल और गोलियों समेत कई सामान बरामद किये थे।
छह बार राष्ट्रपति पदक और एक बार शौर्य चक्र से नवाजे गये प्रकाश रंजन मिश्रा की गोली का शिकार बना जीदन गुड़िया
छह बार राष्ट्रपति पदक और एक बार शौर्य चक्र से नवाजे गए प्रकाश रंजन मिश्रा की गोली से जीदन गुड़िया मारा गया। झारखंड में नक्सलियों के खात्मे के लिए लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। नक्सलियों और उग्रवादियों से झारखंड पुलिस और सीआरपीएफ का लगातार मुठभेड़ होता रहता है। लेकिन बावजूद इसके नक्सली और उग्रवादी एक सीआरपीएफ अधिकारी के नाम से दहशत में रहते हैं। उस अधिकारी का नाम है प्रकाश रंजन मिश्रा। उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है। अभी नक्सल प्रभावित जिला खूंटी में सीआरपीएफ 94 में सेकेंड इन कमांड के पद पर तैनात हैं। जीदन के साथ हुए मुठभेड़ में पुलिस टीम का लीड एनकाउंटर स्पेशलिस्ट मिश्रा ही कर रहे थे। वह खूंटी का एडिशनल एसपी रहते हुए सातवीं बार वीरता के पुलिस पदक से सम्मानित किये गये हैं। देश के सुरक्षा बलों के इतिहास में किसी एक अधिकारी को मिलने वाले वीरता के सर्वाधिक पुलिस पदक हैं। झारखण्ड और छतीसगढ़ में तैनात हर सुरक्षाकर्मी, जो नक्सल मोर्चे पर डटा हुआ है पीआर मिश्रा को अपना आइडियल मानता है। प्रकाश रंजन असम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर और ओडिशा जैसे राज्यों में भी अपनी सेवा दे चुके हैं। 18 सितंबर 2012 को झारखंड के चतरा जिले के राबदा गांव में सीआरपीएफ और माओवादियों के बीच भीषण मुठभेड़ में प्रकाश रंजन मिश्रा को 6 गोलियां लगीं थी। घायल होने के बावजूद पीछे नहीं हटे और नक्सलियों को तबाह कर दिया। इनके जिस्म में 9 स्पिलंटर लगे हैं। पीआर मिश्रा अब तक 317 नक्सलियों और उग्रवादियों को गिरफ्तार कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने इंसास, एके 47 जैसे 116 हथियारों की बरामदगी की हैं।
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