रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संसद में पेश किए गए आम बजट को आम लोगों की उम्मीदों के विपरीत बताया।उन्होंने शनिवार को कहा कि केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने पौने तीन घंटे के बजट भाषण में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किस मोर्चे पर क्या तैयारियां की गयी हैं, इसकी कोई चर्चा नहीं की। यह बजट गरीब, किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों और युवाओं को हताश करने वाला है।

मुख्यमंत्री ने सीएम आवास में संवाददाताओं को बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस बजट का अर्थशास्त्री लगातार आकलन कर रहे हैं। इसके उपरांत ही यह कहा जा सकता है कि इस बजट से देश का कितना विकास होगा। लोगों की उम्मीदें कितनी पूरी होंगी और इसका हमारी अर्थव्य्वस्था पर क्या असर पड़ेगा। लेकिन पहली नजर में हमारे दृष्टिकोण से केंद्र सरकार का यह बजट कहीं से विजनरी नहीं लग रहा है।

उद्योगपतियों को राहत, आम लोगों पर आफत

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बजट पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के हितों को ध्यान में रखकर लाया गया है। बड़े उद्योगपति जो टैक्स चोरी करते हैं, उन्हें बजट के जरिए राहत देने की कोशिश की गई है। अब उन्हें टैक्स चोरी पकड़े जाने पर न तो ब्याज देना होगा और न ही पेनाल्टी लगेगी। वहीं मिडिल क्लास को आयकर में मामूली राहत दी गई है। आम लोगों ने आयकर के स्लैब में जिस छूट की उम्मीद की थी, उसे बजट में दरकिनार कर दिया गया है। इतना ही नहीं, इस बजट में ज्यादा से ज्यादा सरकारी संपत्तियों के निजीकरण को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। इससे देश का कहीं से भी हित नहीं सधेगा।

बजट में न तो दिशा दिखती है और न ही दृष्टि

मुख्यमंत्री ने कहा कि आम बजट में विजन का पूरी तरह अभाव है। इसमें न तो दिशा दिखती है और न ही दृष्टि। उन्होंने कहा कि पहली बार बजट में यह देखने को मिला है कि किस सेक्टर में कितना खर्च किया जाना है, इसका कहीं जिक्र नहीं किया गया है। बजट पूरी तरह पूंजीपतियों को समर्पित है और आम लोगों को सिर्फ दिलासा देने की कोशिश की गई है। किसी भी सूरत में इसे संतुलित बजट नहीं कहा जा सकता है।

ट्राइबल यूनिवर्सिटी की मांग की थी, मिला ट्राइबल म्यूजियम

मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर झारखंड में ट्राइबल यूनिवर्सिटी खोलने की मांग रखी थी लेकिन बजट में रांची में ट्राइबल म्यूजियम खोलने की बात है। इस तरह इस बजट में झारखंड की बहुप्रतीक्षित मांग भी पूरी नहीं की गई और यहां के आदिवासियों के साथ फिर धोखा किया गया।

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