पुणे। नवनाथ गोरे महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक कॉलेज में लेक्चरर थे. लेकिन कोरोना के कारण  लगे लॉकडाउन ने उनकी नौकरी छीन ली. आजकल वो अपना घर चलाने के लिए वे खेत में मजदूर का काम कर रहे हैं.

सांगली जिले के जाट तहसील के एक छोटे से निगड़ी गांव के रहने वाले नवनाथ गोरे 32 साल के हैं. उन्हें साल 2018 में युवा लेखकों के लिए साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार मिला था. आज कठ‍िन समय में ये पुरस्कार उनके लिए सांत्वना भर रह गया है. कोरोना वायरस के प्रकोप ने उन्हें खेत‍िहर मजदूर बनने पर विवश कर दिया.

कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते पूरी दुनिया में लाखों लोगों की नौकरी छीनी है. इसी कड़वी सच्चाई का सामना कर रहे नवनाथ गोरे के सामने अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कोई रास्ता नहीं बचा है. वो अपना परिवार चलाने के लिए गृह जिले में एक खेत मजदूर के रूप में काम करने का फैसला ले चुके हैं.

गोरे ने कोल्हापुर जिले के शिवाजी विश्वविद्यालय से मराठी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है. वहां से पोस्ट-ग्रेजुएशन के दिनों में उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘फ़ेसती’ लिखना शुरू किया. पुस्तक 2017 में प्रकाशित हुई और उन्होंने अगले साल साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार जीता.

मीडिया से बातचीत में नवनाथ गोरे ने कहा कि पुरस्कार जीतने के बाद, मुझे अहमदनगर जिले के एक कॉलेज से नौकरी का प्रस्ताव मिला.जहां मैंने कॉन्ट्रैक्ट बेस पर व्याख्याता के रूप में काम करना शुरू किया था।

गोरे बताते हैं कि इस साल फरवरी में, मेरे पिता का निधन हो गया था. मेरी मां और एक 50 वर्षीय भाई जो फिजिकली चैलेंज्ड है, दोनों की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई. अपने पिता की मौत के बाद, गोरे फरवरी में घर चले गए. लेकिन अपने शिक्षण कार्य पर वापस नहीं जा सके क्योंकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए मार्च के अंत में लॉकडाउन लगा दिया गया था.

गोरे अब काम के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं. उन्होंने बताया कि अगर पूरा दिन काम करते हैं तो वो लगभग 400 रुपये डेली कमा लेते हैं. गोरे कोल्हापुर में अपने छात्र दिनों को याद करते हैं, जहां अपने स्नातकोत्तर के बाद, वे अपने परिवार का समर्थन करने के लिए एक एटीएम केंद्र में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते थे.

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