मास्को, 10 फरवरी (स्वदेश टुडे)। रूस-यूक्रेन के बीच तनाव हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। अब रूसी युद्धपोत काला सागर से यूक्रेन की तरफ बढ़ रहा है।

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रूस की सेना तीन मोर्चो पर यानी रूसी सीमा, बेलारूस और डोनबास से घेरने के बाद अब रूसी युद्धपोत काला सागर में आगे बढ़ रहे हैं।

जल्द ही रूस के छह युद्धपोत यूक्रेन की जल सीमा के नजदीक होंगे। तीन अन्य भी उसी रास्ते पर हैं। इसके बाद यूक्रेन रूसी सेना से पूरी तरह घिर जाएगा।

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यह युद्धपोत काला सागर में युद्धाभ्यास करेंगे और यह अभ्यास कितने दिन चलेगा, यह स्पष्ट नहीं किया गया है।

रूसी हमला होने की स्थिति में सीमित सैन्य शक्ति वाला यूक्रेन कितनी देर तक रूस की ताकत के आगे टिक पाएगा, इसे लेकर अनुमान लगने शुरू हो गए हैं।

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विवाद शुरू होने के शुरुआती दिनों में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को आगाह कर चुके हैं कि हथियारों के लिहाज से रूस दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है।

इसी बीच युद्ध रोकने के लिए लगातार सक्रिय फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक बार फिर शांति की अपील की है। बर्लिन पहुंचे मैक्रों ने जर्मनी के चांसलर ओलफ शुल्ज से मुलाकात की है।

बर्लिन में जर्मनी के चांसलर और पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रजेज डूडा से बातचीत में मैक्रों ने कहा कि हमारा साझा उद्देश्य यूरोप को युद्ध से बचाना है।

नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) और यूरोपीय यूनियन के दो खास देशों-फ्रांस और जर्मनी की कोशिश है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध न भड़के क्योंकि इससे यूरोप के हित प्रभावित होंगे लेकिन वे पुतिन से इस बाबत कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं ले पाए हैं।

पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन को नाटो में शामिल न किए जाने का आश्वासन उसे मिले, तब वह अपनी सेनाएं वापस बुलाएगा।

अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो ऐसा कोई आश्वासन नहीं दे रहा। अमेरिका जान रहा है कि यह यह दुनिया की सदारत का मसला है। इसमें अगर वह पीछे हटा तो अपना ताज गंवा देगा। फिर रूस और चीन मिलकर उसके हितों को पर चोट करते जाएंगे। ऐसे में यूरोप अमेरिका और रूस के बीच फंसा है।

इसी बीच नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि समय जैसे-जैसे गुजरता जा रहा है, वैसे-वैसे रूसी हमले का खतरा बढ़ता जा रहा है।

रूसी हमला होने की स्थिति में यूरोप को होने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बाधित होने का खतरा है।

अमेरिका के अनुरोध पर जापान ने अपनी गैस यूरोप को भेजने का फैसला किया है। वहीं, पोप फ्रांसिस ने भी रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ रहे तनाव पर एक बार फिर से चिंता जताई है।

क्या है रूस-यूक्रेन विवाद?

गौरतलब है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिली थी. यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है. एक तरफ इस देश में बेहद उपजाऊ मैदानी इलाका है, वहीं दूसरी तरफ पूर्व की तरफ इस देश में कई बड़े उद्योग हैं. यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से का यूरोपीय पड़ोसियों खासकर पोलैंड से गहरा रिश्ता है. यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल है. हालांकि यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यकों की संख्या भी अच्छी खासी है और ये लोग विकसित पूर्वी इलाके में ज्यादा मौजूद हैं.

साल 2014 में रूस की ओर झुकाव रखने वाले यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के खिलाफ यूक्रेन की सरकार में विद्रोह होने लगा था. रूस ने इस मौके का फायदा उठाया और यूक्रेन में मौजूद क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर डाला था और यहां मौजूद विद्रोही गुटों ने पूर्वी यूक्रेन के हिस्सों पर कब्जा कर लिया. यूक्रेन में हुए आंदोलनों के चलते राष्ट्रपति विक्टर को अपना पद छोड़ना पड़ा लेकिन तब तक रूस क्रीमिया का अपने साथ विलय कर चुका था. इस घटना के बाद से ही यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश में जुटा है लेकिन रूस लगातार इसके खिलाफ रहा है. यही वजह है कि यूक्रेन, रूस और पश्चिमी देशों की खींचतान के बीच फंसा हुआ है.

 

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