बिहार। बिहार की राजनीति में कभी अहम भूमिका निभाने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) अब टूट गई है. दिवंगत नेता रामविलास पासवान के  निधन के सिर्फ आठ महीने बाद ही पार्टी टूट गई और इसकी वजह रामविलास पासवान के छोटे भाई और पार्टी के सांसद पशुपति पारस की बगावत रही।

दरअसल, लोक जनशक्ति पार्टी के चार सांसद चंदन सिंह, वीणा देवी, महबूब अली कैसर और प्रिंस राज ने सांसद पशुपति पारस को लोक जनशक्ति पार्टी संसदीय दल का नेता चुन लिया और चिराग पासवान पार्टी में अलग-थलग पड़ गए.

गौरतलब है कि पार्टी में जो टूट हुई है उसकी पटकथा पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही लिखी जानी शुरू हो गई थी. जब चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर दिया था। अन्य सांसदों ने उस वक्त चिराग पासवान के फैसले पर आपत्ति जताई थी. मगर चुनाव के दौरान रामविलास पासवान के हुए निधन के कारण पार्टी के नेताओं ने चिराग पासवान का खुलकर विरोध नहीं कर पाए.

चिराग पासवान अपनी पार्टी के साथ बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ें  और सबसे ज्यादा नुकसान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को पहुंचाया, जिसके कारण चुनाव में JDU केवल 43 सीट ही जीत सकी.

अब कयास लगाए जा रहे कि इसका बदला लेने के लिए चुनाव के तुरंत बाद नीतीश कुमार की पार्टी ऑपरेशन में लग गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ महीनों के अंदर ही लोक जनशक्ति पार्टी के इकलौते विधायक राजू कुमार सिंह को JDU में शामिल करा लिया गया.

सूत्रों के मुताबिक, लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ने में JDU के 2 बड़े नेताओं ने सबसे अहम भूमिका निभाई, जिनमें से एक सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और दूसरे बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी हैं.

दोनों काफी समय से दिल्ली में ही रहकर इस ऑपरेशन की तैयारी कर रहे थे, जिसमें बीजेपी का भी उन्हें खुलकर समर्थन मिला.

जानकारी के मुताबिक, रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही चिराग पासवान को लेकर उनके परिवार और पार्टी में नाराजगी नजर आ रही थी.

जिसका फायदा ललन सिंह और महेश्वर हजारी ने अपने ऑपरेशन में उठाया.

 

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