लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 6 माह से 5 वर्ष के 63.2 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रस्त हैं। 15 से 19 वर्ष की 53.7 प्रतिशत किशोरियां, 15 से 19 वर्ष के 29.2 प्रतिशत किशोर तथा 15 से 49 वर्ष की 52.4 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। इस वजह से उनके स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
शरीर की अंग प्रणाली पर पड़ता है स्थायी दुष्प्रभाव
चिकित्सकों के मुताबिक शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की कम मात्रा होने पर शरीर की अंग प्रणाली को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से शरीर में खून के जरिए ऑक्सीजन का प्रवाह कम मात्रा में होता है, जिससे लोगों को थकान, त्वचा का पीला पड़ना, सिर में दर्द, दिल की धड़कनों का अनियमित होना और सांस फूलना आदि समस्याएं होने लगती हैं। इसके अलावा मनोदशा में बदलाव और चिड़चिड़ापन, कमजोरी आदि समस्याएं भी सामने आती हैं।
गर्भावस्था में एनीमिया को नजरअंदाज करना बेहद खतरनाक
बाल रोग विशेषज्ञों के मुताबिक खून की कमी गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए घातक हो सकती है। बच्चे के मानसिक व शारीरिक विकास पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है और अत्याधिक कमी की स्थिति में उसकी मौत भी हो सकती है। प्रदेश सरकार की ओर से चलाए जा रहे एनीमया मुक्त अभियान में विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसी स्थिति में ये बेहद जरूरी है कि महिलाओं, खासतौर पर गर्भवती स्त्रियों को सेहत का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहें।
एनेमिक मां का बच्चा भी एनेमिक
क्वीन मैरी अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. सुजाता देव के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान खून की कमी होने पर महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे की जिंदगी भी खतरे में आ जाती है। बच्चे का मानक अनुसार विकास नहीं होता है और उसके समय से पहले जन्म लेने और कम वजन का होने का अंदेशा बढ़ जाता है। उन्होंने बताय़ा जन्म के बाद भी बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास अपेक्षाकृत वैसा नहीं हो पाता है जैसा स्वस्थ मां के गर्भ में पल रहे बच्चे का होता है। डॉ. सुजाता के मुताबिक एनेमिक मां का बच्चा भी एनेमिक होता है।
गर्भवती महिला को हार्ट अटैक का भी खतरा
झलकारी बाई महिला अस्पताल की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुधा वर्मा के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान एनीमिया ग्रसित होने पर डिलेवरी के समय अत्याधिक ब्लीडिंग हो सकती है। हार्ट अटैक हो सकता है जिससे महिला की मौत भी हो सकती है। उन्होंने बताया गर्भावस्था के दौरान खून की कमी होने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भवती मां और शिशु की स्वास्थ्य समस्या में एनीमिया सबसे बड़ा कारण
वास्तव में एनीमिया एक ऐसी समस्या है जिस पर लोग बेहद कम ध्यान देते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक एनीमिया गर्भवती मां और उसके होने वाले बच्चे में पाई गई स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे बड़ा कारण है।
एनीमिया का जांच आमतौर पर गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में की जाती है क्योंकि आखिरी तीन महीनों में ही बच्चे के विकास में खून की सबसे ज्यादा खपत होती है। हालांकि तब तक देर हो चुकी होती है। चिकित्सकों के मुताबिक वैसे बच्चें जिनकी मां गर्भधारण करने के शुरुआती महीनों में एनीमिया से पीड़ित पाई गईं, उनमें ऑटिज्म और ध्यान आभाव सक्रियता विकार का खतरा अधिक होता है।
सरकार ने शुरू किया विशेष अभियान
इस तरह की सर्वेक्षण रिपोर्ट को लेकर सरकार अलर्ट हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती उम्र के साथ एनीमिया की संभावना भी बढ़ जाती है। इसलिए प्रदेश में शुरूआती स्तर पर ही इसकी रोकथाम के लिए शिशुओं को केन्द्र में रखकर विशेष अभियान चलाया जा रहा है। एनीमिया मुक्त अभियान के तहत आज से जगह-जगह टी-3 (टाक-ट्रेस-ट्रीटमेंट) कैंप लगाए जा रहे हैं जो मार्च तक चलेंगे। 18 जनवरी तक एएनम, आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं को 20 व 21 जनवरी को आयोजित होने वाले टी-3 कैंप में जानकारी देंगी। 20 व 21 जनवरी को गर्भवती महिलाओं की एनीमिया की जांच के लिए टी-3 शिविर का आयोजन किया जाएगा। इसमें महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच होगी। 22 से 31 जनवरी को टी-3 कैंप में चिन्हित गर्भवती महिलाओं से एएनएम, आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर आयरन की गोली खाने के बारे में जानकारी देने के साथ ही चिकित्सकों से उपचार करने की सलाह देंगी।
गर्भावस्था के दौरान खून की जरूरत
– शुरुआती दिनों में 2.5 मिलीग्राम प्रतिदिन
– मध्य गर्भावस्था में 5.5 मिलीग्राम प्रतिदिन
– आठवें व नवें महीने में 6.5 मिलीग्राम प्रतिदिन
खून की कमी होने के लक्षण
– सांस लेने में दिक्कत
– कमजोरी लगना
– शरीर में सूजन हो जाना
– शरीर खासतौर पर आंख और जबान सफेद हो जाना
क्या खाएं
– हरी पत्तेदार सब्जी, साग, शलजम, चुकंदर
– लोभिया, राजमा, नारियल, तिल के बीज
– लोहे की कढ़ाई में खाना बनाएं
– अखरोट, सोयाबीन, सेम, दाल, अंडे
– विटामिन सी जरूर लें