नई दिल्‍ली। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (C&AG) ने नोएडा में जमीन की बंदरबाट का खुलासा किया है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों और बिल्‍डर्स ने मिलीभगत से जमीन अधिग्रहण, आवंटन और मंजूरियों में नियमों की जमकर अनदेखी की। सीएजी का आंकलन है अधिकारियों की करतूतों के चलते नोएडा अथॉरिटी को 52,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने इसे रीयल एस्‍टेट डिवेलपर्स के लिए स्‍वर्ग बना दिया क्‍योंकि केवल 18% जमीन का इस्‍तेमाल ही इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट के लिए हुआ।

‘अधूरे प्रॉजेक्‍ट्स वाले बिल्‍डर्स पर कोई ऐक्‍शन नहीं’
नोएडा में हजारों फ्लैट्स के मालिक पजेशन का इंतजार कर रहे हैं। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि प्रस्‍तावित 1.3 लाख ग्रुप हाउजिंग फ्लैट्स में से 44% (57,000) के पास ऑक्‍युपेंसी सर्टिफिकेट्स नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा के 113 में से 71 हाउजिंग प्रॉजेक्‍ट्स भुगतान की अवधि पूरी होने के बावजूद अधूरे पड़े हैं। इनके बिल्‍डर्स के खिलाफ नोएडा अथॉरिटी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

शासन के मूल सिद्धांतों… जनहित के पालन, जवाबदेही, निर्णय लेने में पारदर्शिता, नैतिकता और अखंडता की पूर्ण अवहेलना के प्रमाण हैं।
CAG

सीएजी ने किया 13 सालों का ऑडिट
सीएजी ने दिल्‍ली से सटे नोएडा का पहला बार परफॉर्मेंस ऑडिट किया है। यह ऑडिट 2005-06 से लेकर 2017-18 की अवधि के बीच का है। अपने ऑडिट में सीएजी ने पाया कि नोएडा ने जमीनों की प्‍लानिंग, अधिग्रहण, कीमत तय करने और आवंटन में कई गड़बड़‍ियां कीं। सीएजी ने नोएडा बोर्ड, उसके प्रबंधन और अधिकारियों की नाकामी को उजागर किया है। ग्रेटर नोएडा पर भी सीएजी की ऐसी ही एक रिपोर्ट जल्‍द विधानसभा में रखी जाएगी।

नोएडा में जमीनों की बंदरबाट का खुलासा करती सीएजी की यह रिपोर्ट अगले साल होने प्रस्‍तावित विधानसभा चुनावों से पहले सियासी पारा चढ़ा सकती है। रिपोर्ट में योगी आदित्‍यनाथ सरकार से पहले की सरकारों के कामकाज का ऑडिट है।

नोएडा अधिकारियों ने नियमों की धज्जियां उडा़ दीं
नोएडा अथॉरिटी ने ‘इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट’ को वजह बताकर 80% भूमि ‘तात्कालिकता खंड’ के तहत अधिग्रहीत की। अंतिम प्रस्‍ताव जमा करने में 11 महीने से लेकर चार साल तक की देरी हुई। सीएजी ने केवल जमीनों के आवंटन से ही 14,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट बताती है कि कैसे नोएडा के अधिकारियों ने बिल्‍डर्स को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को तोड़ा-मरोड़ा। बिल्‍डर्स का बकाया 14,000 करोड़ की अलॉटमेंट वैल्‍यू के मुकाबले 18,633 करोड़ तक पहुंच गया, मगर कोई ऐक्‍शन नहीं लिया गया।

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