नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों की संविधान बेंच ने 2016 में हुई नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को 4-1 के बहुमत से खारिज कर दिया। चार जजों ने नोटबंदी के फैसले को सही और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने गलत ठहराया। 07 दिसंबर को कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। नोटबंदी की प्रक्रिया को सही ठहराने वाले जजों में जस्टिस एस अब्दुल नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम शामिल हैं।

चार जजों ने अपने फैसले में कहा कि यह कार्यपालिका की आर्थिक नीति थी जिसे पलटा नहीं जा सकता। नोटबंदी का फैसला लेने की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी। इसलिए उस नोटिफिकेशन को रद नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा है कि पुराने नोट बदलने के लिए 52 हफ्ते का पर्याप्त समय दिया गया, जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि 1978 में नोटबंदी के लिए तीन दिन का समय दिया गया था, जिसे पांच दिनों के लिए और बढ़ाया गया था।

इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के नतीजों के बारे में न तो आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड को पता था और न ही केंद्रीय कैबिनेट को कोई जानकारी थी।

चिदंबरम ने कहा था कि सरकार ने ये फैसला लेने से पहले पुराने और नये नोटों के बारे में कुछ नहीं सोचा। कोई आंकड़ा नहीं जुटाया गया। उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या नोटबंदी का फैसला 24 घंटे के अंदर लिया जा सकता है।

चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के बाद ज्यादातर नोट वापस आ गए। नोटबंदी के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह कानूनी तौर पर उल्लंघन है।

केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि 2016 के पहले भी देश में दो बार नोटबंदी की गई। पहली नोटबंदी 1946 में और दूसरी नोटबंदी 1978 में हुई थी।

नोटिफिकेशन की धारा 4 के मुताबिक ग्रेस पीरियड दिया जा सकता है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं का ये कहना बेबुनियाद है कि नोटबंदी से अप्रवासी भारतीयों का अपमान हुआ। नोटबंदी का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद इस पर संसद ने चर्चा की। संसद ने पूरी चर्चा कर इसे मंजूरी भी दी।

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