– नानावती-मेहता आयोग की गोपनीय जांच रिपोर्ट गृह मंत्री ने सदन में रखी
– तीन आईपीएस अधिकारियों की नकारात्मक भूमिका का भी रिपोर्ट में जिक्र
– तीस्ता सीतलवाड़ और एक अन्य एनजीओ ने मिलकर रची थी दंगों की साजिश
गांधीनगर। गुजरात दंगों की जांच कर रहे नानावती-मेहता आयोग की गोपनीय जांच रिपोर्ट बुधवार को गुजरात के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने विधानसभा में रखी। इस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तीन नेताओं को क्लीनचिट दी गई है जबकि तीन आईपीएस अधिकारियों की नकारात्मक भूमिका का भी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है।
गोधराकांड की रिपोर्ट के दूसरे हिस्से को सदन में रखते हुए गृह मंत्री ने कहा कि गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में 59 कारसेवकों को जिंदा जलाए जाने के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। इस घटना के मृतकों में 27 महिलाएं, 10 बच्चे और 22 पुरुष शामिल थे। इन दंगों में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के थे। राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए न्यायमूर्ति नानावटी और न्यायमूर्ति मेहता जांच आयोग का गठन किया था। बुधवार को गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने दंगों की जांच कर रहे नानावती आयोग की अंतिम रिपोर्ट गुजरात विधानसभा में पेश की। रिटायर्ड न्यायाधीश जीटी नानावती और अक्षय मेहता ने 2002 दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट 18 नवम्बर, 2014 में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी लेकिन तब से यह रिपोर्ट राज्य सरकार के पास ही थी।। रिपोर्ट का पहला हिस्सा 25 सितम्बर, 2009 को विधानसभा में पेश किया गया था।
आज पेश किये गए दूसरे हिस्से की रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं के बारे में गृह मंत्री ने बताया कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी जलाए जाने के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा सुनियोजित नहीं थी। यह कांग्रेस की नरेंद्र मोदी को बदनाम करने की चाल थी। इसमें न तो राजनीतिक नेता अशोक भट्ट, भरत बारोट और हरेन पंड्या दंगों में शामिल थे। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सबूतों को नष्ट करने के लगाए गए आरोप जांच में झूठे साबित हुए हैं। साथ ही तीन अधिकारियों आरबी कुमार, संजीव भट्ट और राहुल शर्मा की नकारात्मक भूमिका साबित हुई है। इन दंगों की साजिश तीस्ता सीतलवाड़ और एक अन्य एनजीओ ने मिलकर रची थी।
गृहमंत्री जडेजा ने बताया कि आयोग ने 1,500 से अधिक पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि राज्य के किसी मंत्री ने इन हमलों के लिए किसी को उकसाया या भड़काया। हां यह अलग बात है कि कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस अप्रभावी रही क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं थे या वे हथियारों से अच्छी तरह लैस नहीं थे। आयोग ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच या कार्रवाई करने की सिफारिश भी की है।