नई दिल्ली। अयोध्या आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चम्पत राय ने कहा है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में विवादित ढांचा विध्वंस के किसी भी आरोपित का नाम शामिल नहीं किया जाना केंद्र सरकार की दूर दृष्टि का परिचायक है।

विहिप उपाध्यक्ष राय ने शुक्रवार को जारी एक सार्वजनिक पत्र में कहा कि यदि ट्रस्ट में 06 दिसम्बर,1992 की घटना के किसी आरोपित का नाम शामिल कर लिया जाता तो राममंदिर निर्माण की विरोधी शक्तियां तत्काल सक्रिय हो जातीं और अदालत का दरवाजा खटखटातीं। वह परिस्थिति ज्यादा गंभीर होती। इससे बचाया गया है। इसे दूरदर्शी कहा जाना चाहिए।

राय ने अपने पत्र में लिखा, “92 वर्ष से भी अधिक आयु के अधिवक्ता के. पाराशरन जी को न्यास का प्रथम न्यासी बनाया गया है। उन्हीं की उपस्थिति में केंद्र सरकार के अंडर सेक्रेटरी ने न्यास का पंजीकरण कराया है। न्यास में स्पष्ट उल्लेख है कि पंजीकरण के बाद न्यास के गठनकर्ता का कोई नियंत्रण न्यास की गतिविधियों पर नहीं रहेगा। केवल न्यासीगण ही न्यास की संपत्ति का उपयोग न्यास के उद्देश्यों के अनुरूप करेंगे। इस प्रकार गठन के पश्चात् न्यास स्वायत्तशासी है। न्यास में दो स्थान अभी रिक्त रखे गए हैं और इन दोनों स्थानों पर व्यक्तियों के चयन का अधिकार न्यास के अभी तक नामित आठ सदस्यों को दिया गया है। न्यास अपनी पहली बैठक करेगा, आवश्यक वैधानिक प्रक्रिया पूरी करेगा और समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप दो व्यक्तियों को न्यास के साथ जोड़ सकेगा। इस प्रकार कुल 10 न्यासी हो जाएंगे। यह सब बहुत गहरायी तक सोचने के बाद निर्णय लिया गया है।”

पत्र में लिखा गया है कि “निर्मोही अखाड़ा की अयोध्या बैठक का एक प्रतिनिधि न्यासी रखा गया है। इसे मिलाकर कुल 11 न्यासी हैं। सभी 11 न्यासियों को वोट का अधिकार दिया गया है। यदि पूज्य नृत्य गोपालदास जी महाराज अथवा चम्पत राय को पहले दिन से ही न्यास में जोड़ लिया जाता है तो मंदिर निर्माण की विरोधी शक्तियां तत्काल अदालत को निवेदन करतीं कि ये दोनों व्यक्ति 06 दिसम्बर,1992 की घटना के लिए आरोपित किए गए हैं। इनके विरुद्ध लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत में मुकदमा चल रहा है। अतः दोनों नाम हटाए जाएं, तो विवाद समाप्त करने के लिए अदालत दोनों नाम हटाने का आदेश दे सकती थी। वह परिस्थिति ज्यादा गंभीर और अपमानजनक होती, इससे बचा गया है। इसे दूर दृष्टि कहा जाना चाहिए। विगत 490 वर्षों का संघर्ष मंदिर निर्माण के लिए है, अन्य किसी कार्य के लिए नहीं। अतः हम सबका प्रयास यह होना चाहिए कि मंदिर निर्माण की प्रक्रिया जल्द प्रारम्भ हो। इसके लिए हम सब साधक बनें।”

विहिप उपाध्यक्ष राय ने लिखा है, “महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 1993 में श्रीराम जन्मभूमि एवं उसके चारों ओर की अधिग्रहित की गई 67.3 एकड़ भूमि कल (छह फरवरी) शाम तक नवगठित न्यास को हस्तांतरित किए जाने का आदेश पत्र, नवगठित न्यास के (अयोध्या निवासी) सदस्य विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को सौंप दिया गया है। यह योजनाकारों की बुद्धिमत्ता का उत्तम प्रमाण है। अन्यथा भूमि का अधिकार प्राप्त करने में ही लंबी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता। इस कार्य के लिए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को साधुवाद दिया जाना चाहिए।”

उल्लेखनीय है कि अयोध्या स्थित मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास जी श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष भी हैं। उनकी अयोध्या आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल नौ नवम्बर को श्रीराम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद का फैसला सुनाया था। इसमें केंद्र सरकार को आदेश दिया गया था कि वह 90 दिन के भीतर एक ट्रस्ट का गठन करें, जो राममंदिर निर्माण और उसके संचालन की प्रक्रिया सुनिश्चित करेगा। इस फैसले के 88वें दिन यानी पांच फरवरी को केंद्र सरकार ने ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी।

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