नई दिल्ली। कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में कम से कम चार से छह माह का वक्त है, लेकिन अमेरिका, रूस, ब्रिटेन समेत कई बड़े देशों में इसकी सबसे पहली खुराक पाने की होड़ मच गई है।
अमेरिका सबसे आगे
अमेरिका ने 21 मई को 30 करोड़ खुराक के एस्ट्राजेंका से 1.2 अरब डॉलर का अनुबंध किया। अमेरिका ने जर्मनी कंपनी क्योरवैक से भी करार किया है, लेकिन चांसलर एंजेला मर्केल ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। सनोफी से भी अमेरिका ने करार किया था, लेकिन फ्रांस सरकार के दबाव के बाद वह पीछे हट गई।
चार देशों की 40 करोड़ खुराक
15 जून को फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और इटली ने 2020 के अंत तक 40 करोड़ खुराक के लिए कंपनी से करार किया
यूरोपीय संघ का समझौता
यूरोपीय संघ ने 21 जून को यूरोपीय देशों के लिए सबसे पहले टीका बनाने के लिए कई दवा कंपनियों से 2.3 अरब डॉलर का समझौता किया
ब्रिटेन -तीन करोड़ खुराक
17 मई को ब्रिटेन ने वैक्सीन की तीन करोड़ खुराक के बदले आठ करोड़ डॉलर ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन प्रोजेक्ट में निवेश किए।
भारत -40 करोड़ डोज मंगाएगा
40 करोड़ खुराक पाने के लिए भारत ने एस्ट्राजेंका से किया करार, ताकि अमीर देशों की होड़ से यहां टीकाकरण में बाधा न आए।
दस साल में गरीबों तक पहुंची थी एचआईवी की दवा
एचआईवी की दवा बनने के बाद गरीब अफ्रीकी देशों तक पहुंचने में दस साल का वक्त लग गया था, जबकि सबसे ज्यादा प्रकोप वहीं था। भारत में एक डॉलर में एचआईवी की दवा तैयार होने से अफ्रीकी देशों की मदद हुई।
गरीब देशों के लिए आगे आए संगठन
रेडक्रॉस, वैक्सीन एलायंस गावी, कोएलिशन ऑफ एपेडेमिक प्रपेयर्डनेस कोशिश कर रहे हैं कि वे गरीब मुल्कों के लिए टीके हासिल कर पाएं। एस्ट्राजेंका से दो अरब डोज के लिए गेट्स फाउंडेशन ने 75 करोड़ डॉलर का करार किया है।
वैक्सीन राष्ट्रवाद
बड़े देशों द्वारा टीके के लिए पहले से कोटा हासिल कर लेने को वैक्सीन राष्ट्रवाद करार दिया गया है। सवाल है कि अमेरिका, रूस और भारत ने डब्ल्यूएचओ के कोविड19 टूल्स एक्सीलरेटर में शामिल नहीं हुए हैं, जिसके तहत वैक्सीन को तैयार करने और बांटने का नियम तय किया गया है।
विरोध में विशेषज्ञ
कम जोखिम वाले देशों में टीकाकरण पहले
ज्यादा खतरे वाले देशों में टीकाकरण बाद में
गरीब देशों के लिए महंगी हो सकती है वैक्सीन