रांची। 11 जनवरी 1958 में जन्मे झारखंड के प्रथम बाबूलाल मरांडी के 63वां जन्मदिन मना रहे है। उनका झारखंड राज्य का मुख्यमंत्री बन जाना यह साबित करने के लिए काफी है कि इस देश के लोकतंत्र में वह ताकत है, जो एक साधारण परिवार में जन्मे व्यक्ति को सर्वाच्च सिंहासन पर बैठा सकती है। बाबूलाल को अपने पिता के बड़े पुत्र होने के कारण बचपन में वह सब करना पड़ा, जो एक किसान के बेटे को करना पड़ता है। अति प्रातः उठकर जंगल जाना और घंटे-दो घंटे बाद लकड़ी का एक गट्ठर सिर पर ढोकर लाने वाले बालक के जीवन में कोई सपना भी हो सकता है! अगर होता भी होगा, तो मुख्यमंत्री बनने का सपना तो कदापि नहीं होगा। घर के बाहर लकड़ी का गट्ठर रखकर बासी भात नमक पानी के साथ खा लेने वाले बालक बाबूलापल को तब स्कूल जाने से वंचित होना पड़ता था, जब खेतों की जुताई का काम होता था। कभी वह खुद हल पकड़ते, तो पिता मेड़ों की कांट-छांट करते और कभी पिता हल पकड़ते, तो वह मेड़ों पर थोड़ा सुस्ता लेते। स्कूल और कॉलेज भी पास में नहीं था। गांव से चार बजे भोर में बस खुलती। खुलने पहले सीटी बाजी तो बाबूलाल जैसे-तैसे दौड़ पड़ते। रात को ढिबरी या लालटेन मी मद्धिम रोशनी में पढ़ते। दिन भर का थका बालक कितना पड़ पाता, जो पढ़वा वहीं बहुत था। मां-बाप ने पढ़ने दिया, यही क्या कम था।
इंटर पास करने के बाद 1981 में वह अपने गृह जिले के महतोधरन प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गये। करीब एक साल उन्होंने वहां शिक्षक के रूप में काम किया, पर वेतन कभी नहीं मिला। उनके भाग्य में तो कुछ और लिखा था। परिस्थितिवश उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी। प्राथमिक शिक्षक से एक सफल राजनेता तक की बाबूलाल मरांडी की यात्रा भी कम दिलचस्प नहीं हैं और इसमें शिक्षा विभाग के एक क्लर्क की अहम भूमिका है। इसे ‘‘ब्लेसिंग इन डिसगाइज’’ कहा जा सकता है। दरअसल वह अपने वेतन भुगतान के सिलसिले में उस क्लर्क से मिलने जिला मुख्यालय गये थे। पर आशा के विपरीत उस क्लर्क ने उनके साथ बड़ा अभद्र व्यवहार किया। इससे वह बहुत दुःखी हुए और खिन्न कर शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के साथ आरएसस के संपर्क में आये है और राम मंदिर आंदोलन शुरू होने पर वह उससे पूरी तरह से जुड़ गये। बाद में उन्होंने दुमका लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को शिकस्त दी और राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2007 में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ दिया और राज्य में सत्ता के नये शक्ति केंद्र के रूप में उभरे, लेकिन 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली और वे बीजेपी में शामिल हो गये। बीजेपी ने उन्हें पार्टी विधायक दल का नेता चुना है और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिये जाने की मांग की है, परंतु अभी उनकी विधानसभा सदस्यता का मामला दल-बदल कानून के तहत स्पीकर के न्यायाधीकरण में लंबित है।
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