बृजनन्दन राजू
लखनऊ। कलाकारों का जीवन एक तपस्वी की भांति होता है। वह अपनी कला को निखारने के लिए वर्षों तक कठिन साधना करता है। कलाकार केवल मौज मस्ती के लिए अपनी कला का प्रदर्शन नहीं करता है। अपितु उसके पीछे समाज व राष्ट्र का हित निहित होता है। संघ के वरिष्ठ प्रचारक और संस्कार भारती के संरक्षक योगेन्द्र बाबा ने हजारों कलाकारों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आप कैसे आए?
बस्तीशहर में गांधीनगर मोहल्ला है। वहीं पर गौरीरत्न धर्मशाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगती थी। शाखा में लाठी चलाना अच्छी प्रकार से सिखाया जाता था। इसलिए पिताजी बाबू विजय बहादुर हमें लेकर संघ की शाखा में गये। इसके बाद हम शाखा जाने लगे।
प्रचारक बनने की प्रेरणा आपको कहां से मिली।
बाल मुकुन्द इण्टर कालेज बस्ती से हाईस्कूल पास कर आगे की पढ़ाई के लिए गोरखपुर गया। वहां पर संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से भेंट हुई। उन्हीं की प्रेरणा से मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बना। संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष हमने 1942 में कालीचरण इण्टर कालेज लखनऊ से किया। द्वितीय वर्ष वाराणसी से और तृतीय वर्ष 1945 में किया। इसके बाद संघ के प्रचारक बने।
संघ में आप किन-किन दायित्वों पर रहे।
संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष करने के बाद सबसे पहले हमें बस्ती का तहसील प्रचारक बनाया गया। इसके बाद महराजगंज व पड़रौना में तहसील प्रचारक रहा। इसके अलावा बस्ती,प्रयागराज,बहराईच,बरेली,बदायूं,हरदोई और सीतापुर में जिला प्रचारक रहा। 1975 में जब आपातकाल लगा उस समय मैं सीतापुर का विभाग प्रचारक था।
संस्कार भारती कलाकारों का संगठन है। आप में कलाकारों का ऐसा कोई विशेष गुण था क्या? जिसकी वजह से आपको संस्कार भारती में भेजा गया।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी। 1978 में दिल्ली में विद्याभारती द्वारा देशभर के शिशुओं का बड़ा कार्यक्रम था। जिसे शिशु संगम नाम दिया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी और पूज्य सरसंघचालक बाला साहब देवरस उस कार्यक्रम में आये थे। उसमें हमें साज-सज्जा का काम मिला था। उसमें हमने कुछ प्रदर्शनी भी लगायी थी जिसकी लोगों ने काफी सराहना की थी।
इसके बाद वर्ष 1979 में प्रयागराज में द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन हुआ। उसमें 35 देशों के कलाकार आये थे। संघ के वरिष्ठ प्रचारक एकनाथ रानाडे के कहने पर हमने विवेकानन्द शिला स्मारक की प्रदर्शनी बनाकर सम्मेलन में लगायी थी।
पूज्य रज्जूभैया,भाऊराव देवरस और माधवराव देवड़े की इच्छा थी की कलाकारों के बीच अपना काम होना चाहिए तो हमें कहा गया। हम लग गये।
जब आप कलाकारों के बीच काम करना शुरू किया तो कैसा अनुभव रहा?
प्रारम्भ में थोड़ा कठिन कार्य लगा लेकिन पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री विष्णु वाकणकर ने काफी सहयोग किया। डॉ. वाकणकर जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन कला और संस्कृति के शोध, संरक्षण और विस्तार में व्यतीत किया। उन्होंने बहुमूल्य पुरातत्त्वीय सामग्री की खोज की और संस्कार भारती के कार्य को बढ़ाने में उनका काफी योगदान रहा। देश-विभाजन पर बनी प्रदर्शिनी को जिसने देखा, वह द्रवित हुआ। फिर इसके बाद तो आपातकाल,जलता कश्मीर,संकट में गोमाता ,मां की पुकार और 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा कई प्रदर्शनी बनायी गयी।
संस्कार भारती की स्थापना कब हुई? संगठन की वर्तमान स्थिति क्या है?
संस्कार भारती की स्थापना 01 जनवरी 1981 को लखनऊ में हुई। कलाकारों से संपर्क किया गया और जगह- जगह समितियां बनायी गयीं। तब से “सा कला या विमुक्तये” के उद्धघोष के साथ संस्कार भारती कलाओं के संरक्षण, संवर्धन के लिए निरन्तर कार्यरत है। वर्तमान में देशभर में संस्कार भारती का कार्य है और कुल 1200 इकाइयां हैं।
संस्कार भारती की स्थापना के पीछे उद्देश्य क्या है ?
नाटक व लोक कलाओं के माध्यम से व्यक्ति के अंदर देश के लिए जीने मरने की आकांक्षा पैदा करना संस्कार भारती का उद्देश्य है। क्योंकि कलाकारों के जीवन में केवल मौज मस्ती नहीं होती है वह कठिन साधना करते हैं। मातृभूमि के प्रति ममता को समाज में जगाने कार्य कलाकार करते हैं। साधयति संस्कार भारती भारते नवजीवनम् । संस्कार भारती कलासाधकों के माध्यम से भारतवर्ष में नवजीवन का संचार करना चाहती है। संस्कार भारती का लक्ष्य भी मूल्य-आधारित कला और मनोरञ्जन द्वारा व्यक्ति का विकास करना है।
संगठन की आगामी योजनाएं व कार्यक्रम क्या हैं?
संगीत,चित्रकला,साहित्य,नृत्य और प्राचीन भारतीय ललितकला के कलाकारों को मंच प्रदान कर एकसूत्र में पिरोने का कार्य संस्कार भारती करती है। उत्तर प्रदेश सरकार चैरी चैरा शताब्दी मना रही है। संस्कार भारती सहयोग कर रही है। प्रदेश सरकार संस्कार भारती के सहयोग से प्रत्येक जिले में सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित करेगी। नाटक,कहानी,प्रदर्शनी व लोकगीत के माध्यम से जनमानस को चैरी चैरा की शौर्यगाथा से परिचित कराया जायेगा। वहीं आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर केन्द्र सरकार के साथ मिलकर संस्कार भारती देशभर में कार्यक्रम करेगी।
कोरोनाकाल में सांस्कृतिक गतिविधियां बंद होने के कारण तमाम कलाकारों के समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो गया था? अभी भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है।
कलाकार जितना समाज से लेता है उसका कई गुना समाज को देता है। इसलिए कलाकार रहेंगे तो कला रहेगी। कलाएं बचेगी तो संस्कृति बचेगी। कलाकारों को संकट से उबारने के लिए जरूरी है कि सरकार और गैर सरकारी संस्थाएं भी कलाकारों में ऊर्जा भरने के लिए अधिक से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराएं। वैसे कोरोनाकाल में 71270 कला साधकों का आर्थिक मद्द पहुंचाने का कार्य संस्कार भारती ने किया है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।
संस्कार भारती के कुछ उल्लेखनीय कार्यक्रमों के बारे में बताइए?
पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में भी संस्कार भारती का अच्छा कार्य है। त्रिपुरा में 05 हजार चित्रकारों का बहुत ही शानदार कार्यक्रम हो चुका है। 2019 में संपन्न प्रयागराज कुंभ में धर्म-आध्यात्म के साथ-साथ कला-साहित्य का भी संगम हुआ। पूरे मेला क्षेत्र में करीब 6000 पंडाल लगे थे जिसमें से कई तो केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए ही लगाए गए थे। संस्कार भारती द्वारा आयोजित कार्यक्रम, ‘अपना पूर्वोत्तर-एक झलक’ ने एक अलग छाप छोड़ी। कुंभ में पूर्वाेत्तर से तीन हजार कलाकार आये थे। संस्कार भारती द्वारा 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा और विश्व को भारत की देन विषय पर बनायी गयी प्रदर्शनी की देश ही नहीं बल्कि विश्वभर में सराही गयी।
युवा कलाकारों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
कलाकार किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान होते हैं। संस्कार भारती की संकल्पना ‘संस्कृति’ से सम्बद्ध है। ‘वह ’कला के माध्यम से समाज में ‘संस्कार’ पैदा करना चाहती है। कलाकारों को चाहिए कि अपनी कला के माध्यम से समाज को संस्कारित करने का कार्य करें।