न्यूयार्क। भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनातनी के दौर में दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के मौजूदा अध्यक्ष नेपाल ने सदस्य देशों को आगाह किया है कि इस संस्था को लम्बे समय तक निष्क्रिय नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों से लंबित सार्क का 19वां शिखर सम्मलेन शीघ्र आयोजित होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें अधिवेशन के अवसर पर सार्क विदेशमंत्रियों की अनौपचारिक बैठक हुई, जिसमें भारत और पाकिस्तांन के बीच तनाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने बैठक की शुरुआत में अपना सम्बोधन दिया। उस समय पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी नदारद थे। कुरैशी बाद में बैठक में शामिल हुए तब तक जयशंकर वहां से जा चुके थे।
सार्क के वर्तमान अध्यक्ष नेपाल के विदेशमंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि दक्षिण एशिया देशों के नेताओं ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए 34 वर्ष पहले सार्क की स्थापना की थी। सदस्य देशों पर यह जिम्मेदारी है कि वे इस संगठन के स्थापना उद्देश्यों को पूरा करें तथा आर्थिक और संपर्क सुविधा क्षेत्रीय एकीकरण ग्यावली ने अपने भाषण में एस. जयशंकर और शाह महमूद कुरैशी द्वारा एक दूसरे का बहिष्कार करने का जिक्र नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कई वर्षों से सार्क की शिखर बैठक नहीं हो पाई है। ऐसे में उन्होंने शिखर वार्ता को शीघ्र आयोजित करने का आग्रह किया।
नेपाल ने सार्क की अध्यक्षता काठमांडू में वर्ष 2014 में आयोजित बैठक के समय संभाली थी। वर्ष 2016 में इस्लामाबाद में सार्क की 19वीं शिखर बैठक होनी थी लेकिन उरी सैन्य शिविर और पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमले के मद्देनजर भारत ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया था। बाद में अन्य सार्क देशों ने भी ऐसा ही किया था और यह बैठक नहीं हो पायी थी। तब से अब तक इस संगठन की 19वीं बैठक का इन्तजार है।
ग्यावली के सम्बोधन के बाद पाकिस्तान के विदेशमंत्री कुरैशी ने पेशकश की है कि उनका देश सार्क की 19वीं शिखर वार्ता आयोजित करने के लिए तैयार है। बैठक की शुरुआत में अपनी गैर मौजूदगी के बारे में कुरैशी ने एक बयान में कहा कि उनका देश भारत से तब तक कोई संपर्क नहीं रखेगा जब तक कश्मीर में कथित रूप से दमन का अंत नहीं होता। उन्होंने भारत और जयशंकर के बारे में अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्हें “कश्मीर का जल्लाद” की संज्ञा दी।
बैठक में जयशंकर ने कहा कि सार्क अपने उद्देश्यों को पूरा करने में आतंकवाद के कारण असफल सिद्ध हुआ। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि सार्क के रास्ते में जानबूझ कर रोड़ा अटकाया गया। यह रोड़ा आतंकवाद का है। सार्क ने आपसी सहयोग का अवसर गंवाया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद का खात्मा सार्थक सहयोग की आवश्यक शर्त है। इतना ही नहीं पूरे क्षेत्र के अस्तित्व को आतंकवाद से ख़तरा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय सहयोग आज दुनिया के हर इलाके में हो रहा है। दुर्भाग्य से सार्क क्षेत्र में व्यापार में बाधाओं और संपर्क सुविधा के अभाव के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है। विदेशमंत्री ने सार्क संगठन की कुछ उपलब्धियों को भी गिनाया जो भारत की भूमिका के कारण संभव हो पाई। उन्होंने इस सम्बन्ध में सार्क उपग्रह, सार्क विश्वविद्यालय तथा भारत के राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क का विस्तार सार्क देशों में किए जाने का उल्लेख किया।