स्टडी के दौरान खासकर ह्यूमोरलर इम्युनिटी को देखा गया, इसे एंटीबॉडी मीडिएट इम्युनिटी भी कहते हैं. ताकि कोरोना फैलाने वाले वायरस SARS-CoV-2 के खिलाफ शरीर की सुरक्षा को मापा जा सके. यह स्टडी अभी पब्लिश नहीं हुई है. इसे प्रीप्रिंट सर्वर मेडआर्काइव पर पब्लिश किया गया है. स्टडी में पता चला है कि 6 महीने के बाद लोगों में एंटीबॉडी 80% तक कम हुई है.
एक जैसे मिले नतीजे
स्टडी के मुताबिक, 76 साल की औसत आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों और 48 वर्ष की औसत आयु वाले हेल्थ वर्कर्स में एक जैसे नतीजे देखने को मिले. इससे पहले की गई रिसर्च में टीम ने पाया था कि जिन वरिष्ठ नागरिकों को कोरोना नहीं हुआ था, उनमें वैक्सीन की दूसरी खुराक के दो हफ्तों बाद ही युवा हेल्थ वर्कर्स की तुलना में एंटीबॉडी में कम प्रतिक्रिया दिखी थी.
केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड कैनेडे ने कहा, वैक्सीन के 6 महीने बाद नर्सिग होम के 70% लोगों के ब्लड में कोरोना वायरस संक्रमण को बेअसर करने की क्षमता बहुत कम थी. उन्होंने कहा, ये नतीजे सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा दिए गए बूस्टर खुराक लेने की सिफारिश का समर्थन करते हैं. खासकर बुजुर्गों में. अध्ययन में कहा गया है कि बूस्टर कोरोना के डेल्टा वेरिएंट फैलने की स्थिति में और अधिक अहम है.