नई दिल्ली। कोरोना महामारी से हुए आर्थिक नुकसान की अभी तक भरपाई नहीं हो पाई है. महामारी की नई लहर (Corona 3rd Wave) का संकट भी सिर पर खड़ा है. इस बीच महंगाई (Inflation) दुनिया भर में चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है और 50 साल बाद फिर से अर्थशास्त्रियों की नींदें खराब कर रही है. अभी तक महंगाई का जो ट्रेंड देखने को मिला है, उसके हिसाब से एक्सपर्ट मानते हैं कि नया साल आम लोगों की जेबों पर बोझ बढ़ाने वाला साबित होगा.
30 साल से भी अधिक समय के हाई पर थोक महंगाई
भारत में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) पर आधारित खुदरा महंगाई (Retail Inflation) अभी 4.9 फीसदी पर है. चूंकि यह रिजर्व बैंक (RBI) को दिए गए टारगेट के दायरे में है, इसे बहुत ज्यादा नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह चैन की सांस लेने लायक स्तर भी नहीं है. दूसरी ओर व्होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) पर बेस्ड थोक महंगाई (Wholesale Inflation) पिछले महीने 14.23 फीसदी पर रही है. यह स्तर चिंताजनक है, क्योंकि यह तीन दशकों से भी अधिक समय का सबसे ऊंचा स्तर है. इससे पहले अप्रैल 1992 में थोक महंगाई 13.8 फीसदी पर रही थी. लगातार आठवें महीने में थोक महंगाई 10 फीसदी से अधिक है.
सभी प्रमुख देशों में ऐतिहासिक स्तर पर है महंगाई
अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (Major Economies) को देखें तो अमेरिका (USA) में पिछले महीने महंगाई दर 6.8 फीसदी रही, जो करीब 40 साल बाद का सबसे ऊंचा स्तर है. ब्रिटेन (UK) में महंगाई एक दशक से अधिक समय के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर है. फ्रांस (France) की भी लगभग यही स्थिति है, जहां महंगाई दर नवंबर में 3.4 फीसदी के साथ दशक से अधिक समय के हाई पर रही. पिछले महीने जापान (Japan) में भी थोक महंगाई 40 साल के हाई पर पहुंच गई. यूरोप की सबसे बड़ी इकोनॉमी जर्मनी (Germany) में पिछले महीने महंगाई 5.2 फीसदी के साथ 29 साल के हाई पर रही.
थोक महंगाई का यह स्तर ठीक नहीं
भारत में खुदरा महंगाई अभी भले ही रिजर्व बैंक को दिए गए टारगेट के दायरे में है, लेकिन यह अपर बैंड के करीब बनी हुई है. जिस तरह से थोक महंगाई रिकॉर्ड हाई पर है, यह आने वाले महीनों में खुदरा महंगाई के बढ़ने का साफ संकेत देता है. अर्थशास्त्रियों को यह बात अधिक परेशान कर रही है कि थोक महंगाई के इस चिंताजनक स्तर के पीछे मुख्य फैक्टर सप्लाई साइड की दिक्कतें हैं. यह कहीं से भी अच्छा संकेत नहीं है, खासकर तब जब हमारे सामने महामारी की नई लहर का संकट मंड़रा रहा है.
इकोनॉमिस्ट डॉ सुधांशु का दावा- बढ़ने वाला है ईएमआई का बोझ
सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस (CEPPF) के इकोनॉमिस्ट डॉ सुधांशु कुमार (Dr Sudhanshu Kumar) ने बताया कि भारत में बढ़ती महंगाई के लिए सिर्फ सप्लाई-डिमांड का बैलेंस बिगड़ना जिम्मेदार नहीं है, बल्कि क्रूड ऑयल समेत अन्य बाहरी फैक्टर भी दबाव बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका समेत विकसित देशों में महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर है और हम इससे इम्यून नहीं हैं. देर-सवेर इसका असर यहां भी होना तय है, ऐसे में अगर आरबीआई ब्याज दर तत्काल नहीं बढ़ाता है तो महंगाई का स्तर टारगेट के दायरे को पार कर जाएगा. ब्याज दर बढ़ने का खामियाजा भी आम लोग ही भरेंगे, क्योंकि उनके ऊपर ईएमआई का बोझ बढ़ेगा.
प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ना तय- इकोनॉमिस्ट अनीथा रंगन
इक्वायरस (Equirus) की अर्थशास्त्री अनीथा रंगन (Anitha Rangan) भी डॉ सुधांशु की बात से सहमत लगती हैं. उन्होंने कहा कि आरबीआई के एकोमोडेटिव स्टांस के लिए इंफ्लेशन सबसे बड़ा रिस्क है. अभी तक खुदरा महंगाई बहुत नहीं बढ़ी है, क्योंकि इसमें फूड बास्केट का हिस्सा अधिक होता है. हालांकि खाने-पीने के सामानों के बेस इफेक्ट में रिवर्सल दिखने लगा है. चूंकि थोक महंगाई अधिक बनी हुई है, मानकर चलिए कि अगले साल मार्च-अप्रैल में खुदरा महंगाई छह फीसदी के दायरे के पार निकल जाएगी. यह स्थिति पूरे वित्त वर्ष 2022-23 में बनी रह सकती है. इसका परिणाम होगा कि प्रोड्यूसर्स कीमतें बढ़ाने पर मजबूर होंगे और इसका बोझ आम लोगों की जेबों पर पड़ेगा.
इस कारण से अभी कम है खुदरा महंगाई
उल्लेखनीय है कि खुदरा महंगाई में करीब 46 फीसदी हिस्सा अकेले खाने-पीने के सामानों का होता है. कपड़े व फुटवियर, ईंधन व बिजली और पान-तंबाकू जैसी चीजों का हिस्सा मिलाकर भी करीब 15 फीसदी ही हो पाता है, जबकि आम लोगों के खर्च में इनका काफी योगदान होता है. इनके अलावा सर्विसेज की हिस्सेदारी भी सीपीआई में तुलनात्मक कम होती है. वहीं थोक महंगाई में फूड बास्केट का हिस्सा महज 15.30 फीसदी है. थोक महंगाई में सबसे अधिक हिस्सा मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स का है, जो करीब 65 फीसदी है. आम लोगों की जेबें सबसे ज्यादा इन्हीं प्रोडक्ट्स को खरीदने में हल्की होती हैं.