आजादी से पहले गांवों के रीति रिवाज ट्रेनों में भी लागू होते थे। ट्रेन चलने के शुरुआती दिनों में रेलवे स्टेशनों पर हिन्दू और मुस्लिम टी-स्टॉल हुआ करते थे। ट्रेन में पानी पिलाने के लिए ‘पानी पाड़े’ (पानी पिलाने के लिए कर्मचारी) तैनात थे।
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पानी पाड़े का काम यात्रियों को पानी और चाय पिलाना था। रेलवे के दस्तवेजों के मुताबिक 20वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में धार्मिक भावनाओं को देखते हुए हिंदू और मुस्लिम के लिए अलग-अलग इंतजाम किया गया था।
उस दौर में लोगों को यात्रा के दौरान छुआछूत से समस्या थी। यात्रा के दौरान लोगों को दिक्कत न हो, इसलिए अलग-अलग धर्म के लोगों को पानी पाड़े बनाकर खड़ा किया गया था।
पानी पिलाने के लिए हिंदू और मुस्लिम के लिए पानी-पाड़े भी अलग हुआ करते थे। जो ट्रेनों में घूमकर चिल्लाते थे ‘हिंदू पानी-मुस्लिम पानी।’
आजादी के बाद धीरे-धीरे बदलाव आया। एक ही तरह के स्टॉल होने लगे, जहां सारे जाति धर्म के लोग चाय और पानी पीने लगे। मौजूदा समय अब खानपान का भी स्टॉल हो गया है।