लंदन, एजेंसियां। कोरोना वायरस पहाड़ों पर रहने वाले लोगों पर कम कहर बरपाता है। बोलीविया स्थित हाई एल्टिट्यूड पल्मोनरी एंड पैथोलॉजी इंस्टीट्यूट का शोध तो कुछ यही बयां करता है।
शोधकर्ताओं ने कहा, पहाड़ी लोग जैविक रूप से खून में ऑक्सीजन की कम मात्रा के सहारे जीने के लिए ढल जाते हैं। संक्रमितों में खून में ऑक्सीजन का स्तर घटने से ही सांस लेने में तकलीफ और अंगों के खराब होने की समस्या सामने आती है। ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए वेंटिलेटर का सहारा लेना पड़ता है।
पर कोरोना को हल्के में न लेने की सलाह: ‘रेस्पिरेटरी फिजियोलॉजी और न्यूरोबायोलॉजी जर्नल’ में छपे इस शोध में पहाड़ी आबादी को कोरोना को हल्के में न लेने की सलाह भी दी गई है।
सर्दी-जुकाम, बुखार नहीं सताता: अध्ययन में पहाड़ों पर मिले आधे से ज्यादा मरीज एसिम्टोमैटिक थे। यानी उनकी कोरोना जांच की रिपोर्ट तो पॉजीटिव आई थी, पर वे सर्दी, जुकाम, बुखार, सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षणों से नहीं जूझ रहे थे।
एसीई-2 एंजाइम का स्तर भी कम: उन्होंने यह बताया कि पहाड़ी लोगों में एसीई-2 एंजाइम का स्तर भी बेहद कम होता है। यह वही एंजाइम है, जिसकी मदद से सार्स-कोव-2 वायरस फेफड़ों में मौजूद कोशिकाओं और ऊतकों को संक्रमित करता है।
कम ऑक्सीजन में ढल जाता है शरीर: बकौल गस्तावो, पहाड़ी लोग शुरू से कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में रहते हैं। ऐसे में उनका शरीर जैविक रूप से धमनियों में ऑक्सीजन के कम प्रवाह के बावजूद सामान्य रूप से काम करने के लिए ढल जाता है।