सांस और प्यास पर लगाया पहरा
अखिलेश कुमार गिरि
पिपरवार। सीसीएल द्वारा सिमरिया से लेकर खलारी ,राय,डकरा,बचरा, कल्याणपुर बहेरा से लेकर पूरे क्षेत्र को खतरनाक प्रदूषण से युक्त कर रखा है। यहां की स्थिति प्रदूषण को लेकर काफी भयावह है। आज कोविड को लेकर सतर्कता बरतते हुए लोग मास्क लगा रहे हैं लेकिन पिपरवार क्षेत्र की बात करें तो यहां ट्रांसपोर्टिंग रोड पर चलने वाली गाड़ियों एवं सायडिंग से पैदा हो रहे प्रदूषण से लोग असमय घातक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कोयला खनन क्षेत्रों में संसाधनों का दोहन तो हो ही रहा है जनता के सांस और प्यास पर भी इसका असर हो रहा है। कोयला खनन के दौरान काम कर रही बड़ी-बड़ी मशीनें धूल उड़ाती हैं। पत्थरों को तोड़ने के लिए किए जाने वाले विस्फोट से धूल उड़ती है। विस्फोटकों से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। कोयला ढुलाई में लगे वाहन भारी धुल उड़ाते हैं कोयले की ओवरलोडिंग के कारण वाहनों से गिरने वाले कोयले के टुकड़े के टायरों से पीसकर धूल बन जाते हैं यह धूल चौबीसों घंटे उड़ती रहती है सड़क के किनारे बने घरों का रंग बदरंग हो गया है तो हमारे फेफड़ों की दशा किसी से छुपी नहीं होगी।
बरसात का मौसम आते यह कोयले की धूल कीचड़ में तब्दील हो जाती है ऐसे कीचड़ वाली सड़कों पर गुजरने वाले पैदल यात्री या दो पहिया वाहन चालक दूसरे बड़े वाहनों के नीचे आकर जान गंवा देते हैं। उन्हें 4 घंटे का रोड जाम कुछ मुआवजा और 2 मिनट का मौत ही नसीब हो पाता है। शासन और प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है उसके बाद प्यास की बात करते हैं कोयला खदानों से पानी निकालकर नदियों में फेंक दिया जाता है जिससे आसपास का जलस्तर गिरने लगता है। गर्मी के दिनों में स्थिति भयावह रूप ले लेती है अप्रैल से ही कुएं सूखने लगते हैं लोग पानी को तरस जाते हैं जिस जलस्तर के लिए रूफटॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग करने के विषय में लोगों को जागरूक किया जा रहा है यह कंपनियां उसी जलस्तर को तबाह करने में लगी हुई हैं इनसे शुद्ध पेयजल की आशा करना ही बेमानी है।
लोग हैंडपंपों के सहारे एवं बोतलबंद पानी खरीदने में पानी पानी हो रहे हैं पर करें क्या कोयले की कमाई से जिंदगी चल रही है इसीलिए धूल एवं प्रदूषण के नर्क में रहने को मजबूर हैं एक ओर कोयले ने रोजगार की आशा जगाई वही दूसरी ओर परेशानियों का पहाड़ खड़ा कर दिया लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इसे विकास कहें या ह्रास। जीवन स्तर तो उठा है पर जीवन ही छोटा हुआ जा रहा है प्रदूषण जीवन लील रहा है परंतु रहने की भी मजबूरी है जाएं कहां।