नई दिल्ली। यदि सबकुछ ठीक रहा तो अगले 10 वर्षो में धरती कृत्रिम सूरज से रौशन होगी। लंबे समय से इस पर काम कर चल रहा है। मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम कंपनी इस दिशा में लंबे समय से काम कर रही है। हाल ही में उन्हें एक उम्मीद की किरण दिखी है। परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले खतरे से दूर इस नई परियोजना में फ्यूजन और फीजन का प्रयोग किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे न सिर्फ कृत्रिम रौशनी मिलेगी बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी होगी।
फ्यूजन ब्रह्मांड का ऊर्जा स्नोत है। सूर्य सहित सभी सितारे फ्यूजन के जरिये ही ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। जब हल्के कण अविश्वसनीय दबाव और तापमान (लाखों डिग्री सेल्सियस) पर आपस में मिलते हैं तो वे भारी पदार्थ का अणु बनाते हैं और बहुत सारी ऊर्जा पैदा करते हैं। सितारों में सामान्यत: हल्का कण हाइड्रोजन होता है जो फ्यूज या द्रवित होकर हिलियम बनाता है। यही प्रक्रिया यदि धरती पर किसी परमाणु रिएक्टर में हो तो सूर्य को किसी डब्बे में बंद करने जैसा होगा।
डिब्बे में बंद सूरज : मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के विज्ञानी कहते हैं, मेरे सहयोगी शैनन यी ने इस अवधारणा को डिब्बे में बंद सूरज का नाम दिया है। यह मूल रूप से गहन प्रकाश स्नोत है। जो सभी बॉक्स में समाहित करता है जो गर्मी को इकट्ठा करता है।
विज्ञानी लगातार कह रहे हैं कि सूरज की रौशनी कम हो रही है। खुद नासा के भी शोध यही बता रहे हैं। आकाश गंगा के दूसरे तारों की अपेक्षा सूरज जल्दी कमजोर हो रहा है। ऐसे में धरती पर हिमयुग की आंशका गहराने लगी है। इससे उबरने के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि वैज्ञानिक तेजी से कृत्रिम सूरज की खोज में लगे हैं। चीन भी इस दिशा में काम कर रहा है। उसका दावा है कि वह असल सूरज से लगभग 13 गुना तक ज्यादा रोशनी और गर्मी देने वाला विकल्प तैयार कर रहा है।
परमाणु ऊर्जा हमारे लिए नया नहीं है। भारत में करीब 55 साल से इस पर काम चल रहा है। विश्व में 440 के करीब परमाणु संयंत्र हैं, मगर इन सभी संयत्रों में फीजन यानी परमाणु के विखंडन से ही ऊर्जा पैदा की जाती है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा तो प्राप्त होती है, लेकिन अनुपयोगी रेडियोएक्टिव कचरा भी बचता है, जो खतरनाक होता है। इससे परमाणु संयंत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं के कारण बड़ा नुकसान और दूरगामी नकारात्मक प्रभाव की आशंका बनी रहती है।
फीजन के बजाए विज्ञानी फ्यूजन का विकल्प तलाश रहे हैं, जिससे ऊर्जा तो पैदा हो लेकिन रेडियो एक्टिव कचरा उत्पन्न होने का खतरा न रहे। एक सदी से इस पर कोशिश चल रही है। हाल के दिनों में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम कंपनी द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयासों से उम्मीद जगी है।
परमाणु संयंत्रों से ऊर्जा प्राप्त करने का फायदा भी है। इसमें कार्बन उत्सजर्न बहुत कम या नगण्य होता है। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।